नयी दिल्ली : प्रशांत महासागर में ‘ला नीना’ की स्थिति समाप्त हो गयी है। पृथ्वी के सबसे बड़े महासागर के सर्दियों तक ‘तटस्थ’ चरण में रहने की संभावना है। ‘ला नीना’ को आमतौर पर भारत में अच्छी मानसून बारिश के लिए अनुकूल स्थिति वाला माना जाता है।
गुरुवार देर रात हुई घोषणा
अमेरिकी सरकारी एजेंसियों ने गुरुवार देर रात इसकी घोषणा की। विशेषज्ञों का कहना है कि यह भारत के मानसून के लिए अच्छी खबर हो सकती है। इसकी वजह है कि इससे मौसम में सूखे या अधिक बारिश की संभावना कम हो जाती है लेकिन इससे मानसून का पूर्वानुमान मुश्किल हो सकता है। ऑस्ट्रेलियाई मौसम ब्यूरो के ताजा अपडेट के अनुसार पूर्वानुमानकर्ताओं की मुश्किलें और भी बढ़ गयी हैं क्योंकि हिंद महासागर में भी कम से कम अगस्त तक स्थितियां ‘तटस्थ’ रहने की संभावना है।
सितंबर तक तटस्थ स्थितियां बनी रहेंगी!
प्रशांत महासागर के साथ-साथ हिंद महासागर में सतह का तापमान भारत के मानसून में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, महासागर का ‘सकारात्मक’ चरण जब पश्चिमी हिंद महासागर का पानी पूर्व की तुलना में गर्म होता है और आम तौर पर बारिश को बढ़ावा देता है। प्रशांत क्षेत्र के लिए अमेरिका के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र ने कहा है कि 50 फीसदी से अधिक संभावना है कि सितंबर तक तटस्थ स्थितियां बनी रहेंगी। पूर्वानुमान केंद्र ने कहा कि वर्ष के अंत तक इसके बने रहने की संभावना ‘ला नीना’ या ‘अल नीनो’ की तुलना में भी अधिक है।
अवांछित मानसून परिणामों की उम्मीद नहीं
वरिष्ठ मौसम विज्ञानी और केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजी वान के अनुसार जब प्रशांत महासागर की परिस्थितियां तटस्थ होती हैं, तो भारतीय मानसून के लिए सभी परिदृश्य खुले होते हैं हालांकि, सूखे या बाढ़ वाले वर्ष की संभावनाएं कम होती हैं। आम तौर पर तटस्थ प्रशांत स्थितियों के तहत हम अवांछित मानसून परिणामों की उम्मीद नहीं करते हैं।
12 साल में पहली बार होगा ऐसा...
अगर यह पूर्वानुमान सही साबित होता है तो 12 साल में यह पहली बार होगा कि मानसून अवधि या उसके तुरंत पहले या बाद के महीनों में ‘अल नीनो’ या ‘ला नीना’ की मौजूदगी नहीं होगी। प्रशांत महासागर की ये दो विपरीत स्थितियां बड़े पैमाने पर मौसम की विशेषताओं में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं जो यह निर्धारित करती हैं कि जून-सितंबर की अवधि में भारत में कितनी बारिश होगी। प्रशांत महासागर में तटस्थ स्थितियों के दौरान, जिसे ईएनएसओ तटस्थ चरण के रूप में भी जाना जाता है, महासागर के पूर्वी और मध्य भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में सतह के पानी का तापमान न तो असामान्य रूप से गर्म होता है (अल नीनो स्थितियां, जो भारतीय मानसून को कमजोर करती हैं) और न ही बहुत ठंडा (‘ला नीना’) जबकि इसे महासागर की प्राकृतिक स्थिति कहा जाता है, तटस्थ वर्ष इतने आम नहीं हैं।
मानसून वर्षा औसत का 103% होने की संभावना : विशेषज्ञ
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के पूर्व मानसून पूर्वानुमानकर्ता राजीवन ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में मानसून का पूर्वानुमान लगाना अधिक कठिन है। पूर्वानुमानकर्ताओं को अधिक सावधान रहना होगा और अटलांटिक महासागर की स्थिति जैसे कारकों पर बारीकी से नजर रखनी होगी। आंतरिक गतिशीलता भी एक भूमिका निभा सकती है। निजी एजेंसी स्काईमेट की तरफ से इस वर्ष किए गए पहले मानसून पूर्वानुमान के अनुसार, भारत में कुल मानसून वर्षा सामान्य सीमा के उच्च अंत पर लंबी अवधि के औसत का 103% होने की संभावना है।