कोलकाता: महान फिल्म निर्देशक ऋत्विक घटक की फिल्में आज भी ‘साझा शरणार्थी अनुभव’ को उजागर करती हैं और आधुनिक दर्शकों के लिए प्रासंगिक बनी हुई हैं। यह बात 31वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में उनके जन्म शताब्दी पर आयोजित सेमिनार में सामने आयी।
सेमिनार में प्रमुख स्वतंत्र फिल्म निर्माता सुप्रियो सेन ने बताया कि उनके पिता की यादें और परिवार के अनुभव घटक की फिल्मों में जीवंत हो उठे। सेन ने कहा कि ऋत्विक की फिल्में विस्थापित लोगों की कहानी को ऐसे उजागर करती हैं जैसे यह कोई अधूरे वादे की भूमि हो। उन्होंने ‘तितास एक नदी का नाम’ का उदाहरण देते हुए कहा कि घटक ने बांग्लादेश में यह फिल्म बनाकर शरणार्थियों के दर्द को गहराई से प्रस्तुत किया।
अभिनेता-निर्देशक और घटक के भतीजे परमब्रत चटर्जी ने कहा कि ‘कोमल गंधार’ ने उन्हें किशोरावस्था में गहरे प्रभावित किया। उन्होंने विभाजन को आधुनिक इतिहास में सबसे बड़ा मानव विस्थापन बताया और कहा कि उस समय के अन्य फिल्मकारों ने रक्तपात और हिंसा का यथार्थ नहीं दिखाया।
SRFTI के डीन अशोक विश्वनाथन ने घटक की विशिष्ट शैली और विद्रोही दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऋत्विक न केवल अभिनय में बल्कि फिल्म निर्माण में भी अपनी तीव्र भावना और जुनून दिखाते थे। ऋत्विक घटक, जिनका जन्म 1925 में ढाका में हुआ था, ने ‘अजांत्रिक’, ‘मेघे ढाका तारा’, ‘सुवर्णरेखा’ और ‘युक्ति तक्को आर गप्पो’ जैसी अमर फिल्में बनायीं। उनके काम ने विभाजन के पीड़ितों की आवाज को आगे बढ़ाया और भारतीय सिनेमा को सामाजिक एवं मानवीय दृष्टिकोण से समृद्ध किया।