सीजेआई बी आर गवई (बायें) और जस्टिस यशवंत वर्मा 
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सीजेआई गवई ने जस्टिस वर्मा की याचिका पर सुनवाई से किया इनकार, अलग पीठ करेगा सुनवाई

मैं सुनवाई नहीं कर सकता क्योंकि क्योंकि मैं भी इस प्रक्रिया का हिस्सा रहा : सीजेआई

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने बुधवार को कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की याचिका पर उनका खुद सुनवाई करना ठीक नहीं होगा। आधिकारिक आवास पर मिली नकदी मामले में अभियुक्त न्यायमूर्ति वर्मा इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस याचिका की सुनवाई के लिए विशेष पीठ गठित किया जायेगा।

सिब्बल ने रखा जस्टिस वर्मा का पक्ष

यह मामला न्यायमूर्ति गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची के पीठ के सामने बुधवार को रखा गया था। समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा को इस मामले में कदाचार का दोषी पाया था। न्यायमूर्ति वर्मा ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की ओर से गत आठ मई को की गयी उस सिफारिश को भी रद्द करने का अनुरोध किया है, जिसमें न्यायमूर्ति खन्ना ने संसद से उनके खिलाफ महाभियोग शुरू करने का आग्रह किया था। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वर्मा की ओर से मामले को पेश किया। सिब्बल ने कहा कि याचिका न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश की ओर से की गयी सिफारिश के संबंध में थी। उन्होंने कहा कि हमने कुछ सांविधानिक मुद्दे उठाये हैं। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इसे जल्द से जल्द सूचीबद्ध किया जाये। इस पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि मुझे एक पीठ बनाना होगा। सीजेआई ने कहा कि उनके लिए इस मामले को उठाना शायद सही नहीं होगा क्योंकि वे भी इस प्रक्रिया का हिस्सा हैं।

जस्टिस वर्मा की दलील

सीजेआई ने सिब्बल से कहा कि हम इस पर विचार करेंगे और एक पीठ का गठन करेंगे। अपनी याचिका में न्यायमूर्ति वर्मा ने दलील दी कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गयी महाभियोग सिफारिश अनुच्छेद 124 और 218 का उल्लंघन है। जांच ने ‘साक्ष्य को पलट दिया’ जिसके कारण वे जांच का अनुरोध कर रहे हैं और अपने खिलाफ लगाये गये आरोपों का खंडन कर रहे हैं। न्यायमूर्ति वर्मा ने आरोप लगाया कि समिति के नतीजे एक पूरी काल्पनिक कहानी पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि जांच की समय-सीमा केवल ‘प्रक्रियात्मक निष्पक्षता’ की कीमत पर कार्यवाही को शीघ्रता से समाप्त करने की इच्छा से प्रेरित थी। याचिका में दलील दी गयी है कि जांच समिति ने उन्हें पूर्ण और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिये बिना ही प्रतिकूल निष्कर्ष निकाले।

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