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India-US Trade Oil Politics: आखिर क्या है अमेरिका-भारत के बीच तेल का खेल? जानें किसे होगा फायदा

भारत-अमेरिका तेल समझौता: क्या बदलेगा तेल बाजार का समीकरण?

कोलकाता: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 13 फरवरी को अपने दो दिवसीय अमेरिका दौरे पर गए थे। इस दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से प्रधानमंत्री मोदी के बीच मुलाकात हुई और साथ ही कई अहम समझौते भी हुए। इस समझौते में सबसे अहम अमेरिका से अधिक तेल और गैस खरीदने को लेकर चर्चा हुई। अमेरिका से भारत 2024 में 6.9 बिलियन डॉलर का तेल मंगवाया था। अब अमेरिका चाहता है कि ये आंकड़े पूरी तरह से बदल जाए और वो दोगुना से तीन गुना हो जाए।

दरअसल 2021 तक भारत को सबसे ज्यादा तेल इराक देता है। जबकि रूस-यूक्रेन जंग के बाद से रूस अब भारत को सबसे ज्यादा तेल बेचने लगा है। रॉयटर्स में छपी एक रिपोर्ट की माने तो चीन, अमेरिका के बाद भारत वो देश है जो कच्चे तेल का खपत करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मुल्क है। यहां सबसे बड़ी बात ये है कि भारत अपनी जरूरत का तकरीबन 80 फीसदी तेल दूसरे देशों से मंगाता है।

वहीं भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 232.5 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कच्चा तेल यानि 80 फीसदी तेल को मंगाने के लिए 132.4 बिलियन डॉलर खर्च किए है। अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजर भारत के इसी ऑयल खरीदारी पर टिकी हुई है। अमेरिका चाहता है कि भारत अपनी जरूरत का ज्यादा से ज्यादा तेल अमेरिका से खरीदें। क्योंकि, आंकड़े ये बताते हैं कि क्रूड ऑयल में भारत की खरीदारी कैपिसिटी इतनी है कि किसी भी देश को मालामाल कर सकती है।

कहां से भारत अब तक खरीदता था तेल?

तेल बाजार पर नजर रखने वाली एजेंसी Seair के आंकड़ों की माने तो भारत 2022-23 में भारत ने 232.7 मिलियन मिट्रिक टन कच्चे तेल का आयात किया था। जबकि इसके लिए भारत ने 157.5 बिलियन डॉलर का बिल का भुगतान भी किया था। जबकि 2023-24 की बात करें तो कच्चे तेल के आयात का आंकड़ा 232.5 मिलियन मिट्रिक टन था। भारत का ऑयल इंपोर्ट बिल 132.4 बिलियन डॉलर पहुंच गया है।

अब आंकड़ों के जरिए समझते हैं कि साल 2024 में भारत ने किस देश से कितना कच्चा तेल मंगाया?

भारत को तेल बेचने वालों का देखें लिस्ट

आंकड़ों के मुताबिक भारत ने अमेरिका से मात्र 6.9 बिलियन डॉलर का तेल मंगाता है। ये आंकड़ा 2024 का है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजर भारत के इसी कच्चे तेल के मार्केट पर है। ट्रंप चाहते हैं कि भारत अमेरिका से ज्यादा से ज्यादा मात्रा में कच्चा तेल खरीदे।

रूस से तेल खरीदने पर नाराज हो गया था यूरोप?

यहां आपको बताते चलें कि जब रूस ने फरवरी 2022 को यूक्रेन पर हमला किया तब पूरे यूरोपीय यूनियन ने मिलकर साल 2022 में रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगा दिया था। तब भारत ने ज्यादा से ज्यादा तेल रूस से कम रेट पर खरीदना शुरू कर दिया। हालांकि, इस तेल खरीद को लेकर कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ बोला भी गया बावजूद इसके यूरोपीय बाजारों में रूस का तेल भारत के जरिए पहुंचता रहा।

अब तेल को लेकर साल 2025 तक समय और व्यवहार दोनों बदल गया है। क्योंकि, जहां रूस-यूक्रेन जंग से पहले तक भारतीय तेल के आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी सिर्फ एक प्रतिशत थी, जो एक साल में यानी 2023 में बढ़कर 35 फीसदी हो गई। अब अमेरिका भी भारत से हाथ मिलाकर ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाना चाहता है। अमेरिका से हुए समझौते के तहत भारत अब अमेरिका से कच्चे तेल के साथ-साथ प्राकृतिक गैस का भी आयात करेगा।

क्या भारत को महंगा पड़ेगा तेल?

वैसे रिपोर्ट तो ये कहते हैं कि भारत के लिए रूस से कच्चा तेल खरीदना ज्यादा फायदे का सौदा होगा। क्योंकि, कई यूरोपीय देशों ने रूस पर तेल खरीदने को लेकर प्रतिबंध लगा रखा है, इसलिए रूस से कम कीमत पर तेल खरीदी जा सकती है। वहीं तेल खरीद की एक नीति ये होती है कि अगर आप किसी देश से तेल खरीदते हैं विक्रेता देश खुद ही आपको आपके पोर्ट पर तेल की डिलीवरी देता है।

रूस हमेशा से यही करता है इसलिए भारत को रूस से तेल खरीदना सस्ता पड़ता है। उसे लाने का झमेला नहीं उठाना पड़ता है। जबकि अमेरिका से कैसे डील की गई है ये आने वाला वक्त ही बतलाएगा। वहीं अमेरिका से तेल किस कीमत पर खरीदी जा रही है ये भी जानने का विषय है। क्योंकि, रूस से भारत की कम दूरी की वजह से ज्यादा खर्च नहीं उठाना पड़ता है जबकि अमेरिका से दूरी की वजह से तेल लाना थोड़ा महंगा साबित हो सकता है।

क्या भारत से खाड़ी देश हो जाएंगे नाराज?

भारत किसी भी तरह खाड़ी देशों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाएगा। क्योंकि, भारत के लिए खाड़ी देशों के महत्व को उनके साथ होने वाले व्यापार से समझा जा सकता है। खाड़ी के तकरीबन छह देशों में बहरीन, कतर, कुवैत, ओमान, सऊदी अरब और यूएई को गल्फ कॉरपोरेशन काउंसिल (जीसीसी) कहा जाता है। भारत में आयात होने वाले तेल का एक तिहाई हिस्सा इन्हीं जीसीसी देशों से आता है। वहीं भारत में कतर से सबसे अधिक एलएलजी गैस की सप्लाई होती है। सीधे-सीधे कहे तो ये छह जीसीसी देश ही भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करते हैं। इसलिए अमेरिका या रूस के लिए भारत इन देशों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाएगा।

ऑब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट की माने तो भारत का एक खाड़ी देश यूएई के साथ फरवरी, 2022 में एक कॉम्प्रिहेंसिव इरोनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट भी हुआ था। इसके तहत दोनों देशों के कुल व्यापार को साल 2030 तक 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। जो कि 2023 तक, भारत-यूएई व्यापार का मूल्य लगभग 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

भारत को इससे क्या मिलेगा?

बीबीसी की एक रिपोर्ट की माने तो भारत और अमेरिका के बीच 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने की बात की है। साल 2023 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 190.08 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। जिसमें व्यापार में भारत का निर्यात 83.77 बिलियन डॉलर और आयात 40.12 बिलियन डॉलर था। जबकि दोनों देशों के बीच 43.65 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा था।

दरअसल वाशिंगटन में मीटिंग के बाद हुए संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि वे और मोदी एक समझौते पर सहमत हुए हैं, जिससे भारत को अमेरिका से अधिक तेल व गैस आयात करने में सुविधा होगी। इससे भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा कम होगा। जबकि पीएम मोदी ने कहा था कि हमने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना से अधिक बढ़ाकर 500 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य रखा है। हमारी टीम पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते को शीघ्र पूरा करने के लिए काम करेंगी।

बता दें कि भारत, अमेरिका से सबसे ज्यादा कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला कोक, कटे और पॉलिश किए हुए हीरे, इलेक्ट्रिक मशीनरी, विमान, अंतरिक्ष यान और सोना खरीदता है।

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