नई दिल्ली : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी के अनुसंधानकर्ताओं ने अभिनव सूक्ष्म शैवाल जैव-रिफाइनरी मॉडल विकसित किये हैं, जो अपशिष्ट जल को स्वच्छ ऊर्जा में बदल सकते हैं। यह नवोन्मेषी परियोजना बड़े पैमाने पर रिएक्टर प्रणालियों, उन्नत टिकाऊ ताप-रासायनिक रूपांतरण प्रक्रियाओं और हरित रसायन विज्ञान को जोड़ती है, जिससे घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल का उपचार करते हुए जैव ईंधन का उत्पादन किया जा सकता है।
शोध के लिए 10 से अधिक सूक्ष्म शैवाल प्रजातियों की पहचान की
रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर कौस्तुभ मोहंती ने बताया कि शोध टीम ने 10 से अधिक सूक्ष्म शैवाल प्रजातियों की पहचान की और उनका आनुवंशिक अनुक्रमण किया, जिससे अपशिष्ट जल से 85 प्रतिशत तक प्रदूषक हटाये जा सकते हैं। प्रक्रिया को कुशल और लागत प्रभावी बनाने के लिए हमने बड़े पैमाने पर फोटोबायोरिएक्टर बनाये हैं, जो शैवाल की वृद्धि को अधिकतम करते हैं। टीम ने अपशिष्ट से ऊर्जा बनाने वाली एक प्रणाली भी तैयार की है, जो जैव-कच्चा तेल के रूप में है, जो पेट्रोलियम जैसा ईंधन है।
इसका उत्पादन करने के लिए एकत्रित शैवाल और सीवेज कीचड़ दोनों का उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह एक अवधारणा को सिद्ध करने का कार्य है, जहां हमने प्रदर्शित किया है कि कैसे सूक्ष्म शैवाल अपशिष्ट जल को उपचारित कर सकते हैं और साथ ही जैव-रिफाइनरी और ‘सर्कुलर बायो-इकोनॉमी’ दृष्टिकोण के तहत जैव ईंधन का उत्पादन कर सकते हैं। हमने विभिन्न प्रक्रियाएं भी विकसित की हैं, जहां जैव-रिफाइनरी के तहत उत्पन्न होने वाले सभी ठोस और तरल अपशिष्टों को पुनः चक्रित किया जाता है, पुनः उपयोग किया जाता है और जैव ईंधन में परिवर्तित किया जाता है। अब, हम इस कार्य को आगे बढ़ाने की योजना बना रहे हैं।
ऊर्जा सुरक्षा के कुशल तरीके से अपशिष्ट जल उपचार
आईआईटी, गुवाहाटी के पीएचडी शोध छात्र और अब एसएसएस-एनआईबीई, कपूरथला में विज्ञानी संजीव मिश्रा ने बताया कि शहरीकरण के कारण घरेलू सीवेज में काफी मात्रा में विभिन्न कार्बनिक और अकार्बनिक प्रदूषक शामिल हो गये हैं। इसलिए, एक ऐसी प्रक्रिया विकसित करना आवश्यक है, जो ऊर्जा सुरक्षा के बढ़ते मुद्दों को सरल और कुशल तरीके से अपशिष्ट जल उपचार के साथ हल कर सके। इस संदर्भ में, सूक्ष्म शैवाल अपशिष्ट जल उपचार एक स्वच्छ, हरित और टिकाऊ प्रक्रिया है, जिसे शैवाल जैव-रिफाइनरी दृष्टिकोण के तहत जैव ईंधन उत्पादन के साथ एकीकृत किया जा सकता है। ‘एनर्जी कन्वर्जन एंड मैनेजमेंट’ पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार इस प्रक्रिया से उल्लेखनीय रूप से 40 प्रतिशत ‘बायोक्रूड’ प्राप्त हुआ, जिसमें पेट्रोल, केरोसीन, डीजल और औद्योगिक ईंधन शामिल थे।
ठोस और तरल पदार्थों का पुनः उपयोग
मिश्रा ने बताया कि टीम ने एक कदम आगे बढ़कर इस प्रक्रिया से बचे हुए ठोस और तरल पदार्थों का पुनः उपयोग करने के तरीके खोजे, तथा उन्हें बायोडीजल और हाइड्रोचार जैसे मूल्यवान उपोत्पादों में बदल दिया। सैद्धांतिक द्रव्यमान संतुलन के आधार पर तथा 10 लाख लीटर घरेलू मलजल का उपयोग करके, 2400 किलोग्राम से अधिक शैवाल बायोमास (622 किलोग्राम कीचड़ के साथ), 99 किलोग्राम पेट्रोल, 266 किलोग्राम डीजल और 234 किलोग्राम केरोसिन के अलावा अन्य चीजें प्राप्त की जा सकती हैं। एजेंसियां