सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करने के मामले में गिरफ्तार शर्मिला पनोली को हाई कोर्ट से अंतरिम जमानत नहीं मिली। चीफ जस्टिस से लीव मिलने के बाद मंगलवार को जस्टिस पार्थ सारथी चटर्जी के कोर्ट में इस मामले की सुनवायी हुई। राज्य सरकार की तरफ से अंतरिम जमानत दी जाने का तीखा विरोध किया गया। संक्षिप्त सुनवायी के बाद जस्टिस चटर्जी ने इसकी सुनवायी वृहस्पतिवार तक के लिए टाल दी।
जस्टिस चटर्जी ने आदेश दिया है कि शर्मिष्ठा के खिलाफ कोई और एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी। वजाहत खान ने गार्डनरीच थाने में जो एफआईआर दर्ज करायी है इसी को मूल एफआईआर माना जाएगा। बाकी तीनों एफआईआर इससे क्लब कर दी जाएंगी। इसके अलावा अन्य कोई एफआईआर दर्ज कराये जाने पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। इसके साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया है कि पांच जून को इस मामले की सीडी वैकेशन बेंच में पेश की जाए। हालांकि जस्टिस चटर्जी ने मामले की सुनवायी के दौरान जानना चाहा कि क्या अभियुक्त को अभी जेल हिरासत में रखा जाना आवश्यक है। इसके साथ ही सवाल किया कि वह विषय वस्तु कहां है जिसमें किसी की धार्मिक भावना की निन्दा की गई है। राज्य सरकार की तरफ से पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट कल्याण बनर्जी ने एफिडेविट दाखिल करने के लिए समय देने की अपील की तो शर्मिष्ठा की तरफ से पैरवी कर रहे एडवोकेट डीपी सिंह ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह मामले को लटकाने की एक कोशिश है। एडवोकेट सिंह का सवाल था कि किस कानून के तहत यह गिरफ्तारी की गई है। जिन धाराओं के तहत यह मामला दायर किया गया है उनमें अधिकतम सजा तीन साल की है। बीएनएसएस के तहत इसमें पहले नोटिस दी जानी चाहिए। इसके बगैर ही गिरफ्तारी का परवाना जारी कर कर पीटिशनर को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में तो प्रतिवादी के नहीं रहने पर भी अंतरिम जमानत दी जा सकती है। एडवोकेट सिंह की दलील थी कि वह जांच में सहयोग दे रही थी, पर जब उसके घर पर भीड़ जुटने लगी, उसे धमकियां दी जाने लगीं तो उसने गुड़गांव में सहारा लिया था। इसके साथ ही उनकी दलील थी कि इस मामले में दर्ज एफआईआर के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके साथ ही आरोप लगाया कि जेल में उसे दवाएं और कपड़े तक नहीं दिए जा रहे हैं। पिछले छह दिनों से एक ही कपड़े में है। एडवोकेट बनर्जी की दलील थी कि उसे बकायदे नोटिस दी गई थी। उनके मकान पर ताला लगा हुआ था। इसके बाद ही कानून के तहत गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया। उन्होंने कहा कि किसी भी समुदाय की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। जस्टिस चटर्जी ने सुनवायी की अगली तारीख तय करते हुए कहा कि कोई भी टिप्पणी करने से पहले एहतियात बरतना चाहिए।