सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : पेंशन के एक मामले में हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि टीचर के पद पर काम करने वालों को ही हेडमास्टर के पद पर नियुक्त किया जाता है। जस्टिस सौगत भट्टाचार्या ने यह टिप्पणी करते हुए पीटिशनर की पेंशन का भुगतान किए जाने का आदेश दिया है। पीटिशनर की पेंशन इस आधार पर रोक दी गई थी कि उसका कार्यकाल दस साल से कम है। कानून के मुताबिक दस साल से कम कार्यअवधि वाला पेंशन पाने का हकदार नहीं होता है।
एडवोकेट स्नेहा सिंह बताती हैं कि पीटिशनर खिदिरपुर के एक स्कूल में हेडमास्टर के पद पर 2015 के 18 नवंबर से कार्यरत था। इसी पद पर कार्य करते हुए पीटिशनर 2025 में 31 मार्च को सेवानिवृत्त हो गया। सेवानिवृत्ति के बाद जब पीटिशनर ने पेंशन के लिए आवेदन किया तो उसका आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसके कार्यकाल की अवधि दस साल से कम थी। जब किसी ने नहीं सुनी तो उसने हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी। एडवोकेट सिंह बताती हैं कि हेडमास्टर पद पर नियुक्ति से पहले पीटिशनर ने डीए प्राप्त करने वाले एक स्कूल में एक अगस्त 1991 से 2015 के 17 नवंबर तक सहायक टीचर के पद पर कार्य किया था। इसके बाद ही हेडमास्टर के पद पर उसकी नियुक्ति की गई थी। वर्षों तक सहायक टीचर के पद पर काम करने के बाद उसकी हेडमास्टर के पद पर नियुक्ति की गई थी। पर नौकरशाही ने पेंशन के बाबत फैसला लेते समय इस 24 साल तक के कार्यकाल की उपेक्षा कर दी थी। जस्टिस भट्टाचार्या ने अपने आदेश में कहा है कि पीटिशनर ने एक डीए प्राप्त करने वाले स्कूल में 1991 से 2015 तक सहायक टीचर के पद पर कार्य किया था। इसके साथ ही कहा है कि कानून के मुताबिक हेडमास्टर के पद पर नियुक्ति के लिए टीचर के पद पर कार्य करने का दस साल का अनुभव होना अनिवार्य है। अगर हेडमास्टर के पद पर कार्य करने को ही पैमाना माना जाता है तो कार्यकाल दस साल से कम है, पर अगर टीचर के पद पर कार्य अवधि को इसके साथ जोड़ दिया जाए तो यह दस साल के मुकाबले कई गुणा ज्यादा है। इसका हवाला देते हुए जस्टिस भट्टाचार्या ने दस सप्ताह के अंदर पीटिशनर को पेंशन की सुविधा दी जाने का आदेश दिया है।