टॉप न्यूज़

एक बांग्लादेशी की जुल्म कुबूल करने की चाल काम नहीं आई

हाई कोर्ट से नहीं मिली राहत, बहाल रखी सजा

सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : एनडीपीएस के एक मामले में एक बांग्लादेशी अभियुक्त ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया। उसे उम्मीद थी कि इस कुबूलनामे से उसे सजा कम मिलेगी। इसके बाद वह हाई कोर्ट में अपील करके बरी हो जाएगा। सब कुछ ऐसा ही हुआ पर हाई कोर्ट में आने के बाद यह तदबीर नाकाम हो गई। जस्टिस देवांशु बसाक और जस्टिस शब्बार रसीदी के डिविजन बेंच ने उसकी अपील खारिज कर दी और ट्रायल कोर्ट की सुनायी गई सजा को बहाल रखा है।

एडवोकेट अरुण कुमार माइती ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सिटी सेशन कोर्ट ने उसे फॉरेनर्स एक्ट और एनडीपीएस के मामले में पांच-पांच साल जेल और जुर्माने की सजा सुनायी थी। सजाएं एकसाथ चलनी थीं। ट्रायल चलने के दौरान अभियुक्त रबिउल इस्लाम ने एक एप्लिकेशन देकर कहा कि वह गुनाह कुबूल करना चाहता है। उसे प्रेसिडेंसी जेल से कोर्ट में लाया गया था। ट्रायल जज ने उससे सवाल किया कि क्या वह गुनाह कुबूल करने के परिणाम से वाकिफ है। ट्रायल जज ने उसे बताया कि गुनाह कुबूल करने से जेल की सजा के साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस पर उसने हामी भर ली। उसका अनुमान सही था। ट्रायल जज ने उसे सजा सुनाते समय कहा था कि अभियुक्त के कुबूलनामे के बाद अगर उसे सर्वोच्च सजा सुनायी जाती है तो यह उसके लिए कठोरतम कार्रवाई हो जाएगी। इसके बाद उसने इस सजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर दी। उसकी तरफ से पैरवी कर रहे एडवोकेट की दलील थी कि उसने सिर्फ फॉरेनर्स एक्ट में अपना गुनाह कुबूल किया था। उसने एनडीपीएस मामले में अपना गुनाह कुबूल नहीं किया था। इसके साथ ही उनकी दलील थी कि ट्रायल कोर्ट के फैसले से इस बात का इंगित नहीं मिलता है कि पीटिशनर को गुनाह कुबूल करने के परिणाम के बारे में बताया गया था। डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि इस मामले के मूल अभियुक्त के खिलाफ अभी ट्रायल चल रहा है। पीटिशनर ने दोनों ही मामलों में अपना अपराध कुबूल किया था। उसे इसके परिणाम के बारे में अच्छी तरह बताया गया था। लिहाजा ट्रायल कोर्ट के फैसले में दखल दिए जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। अपील खारिज की जाती है।


SCROLL FOR NEXT