टॉप न्यूज़

अफसर की लापरवाही के लिए पीटिशनर कैसे जिम्मेदार

पेंशन के एक मामले में हाई कोर्ट का आदेश

सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : अफसरों की लापरवाही के लिए पीटिशनर कैसे जिम्मेदार हो सकता है। पेंशन नहीं दिए जाने के एक मामले में हाई कोर्ट ने यह सवाल किया है। एक मेडिकल अफसर ने पेंशन का भुगतान नहीं किए जाने को लेकर हाई कोर्ट में रिट दायर की थी। जस्टिस मधुरेश प्रसाद और जस्टिस सुप्रतीम भट्टाचार्या ने पेंशन का भुगतान किए जाने का आदेश दिया है।

एडवोकेट स्नेहा सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि डॉ. सतीनाथ सामंत ने यह रिट दायर की थी। पीटिशनर कलकत्ता होम्योपैथिक मेडिकल कालेज एंड हॉस्पिटल में मेडिकल अफसर के पद पर कार्य कर रहें थेे। उन्हें पेंशन दिए जाने से इस आधार पर इनकार कर दिया गया कि उनका कार्यकाल आठ वर्ष सात माह और पंद्रह दिन रहा है, जबकि पेंशन पाने के लिए दस साल का कार्यकाल होना चाहिए। राज्य सरकार ने इस मेडिकल कालेज का नियंत्रण अपने अधिकार में ले लिया इस कारण पीटिशनर राज्य सरकार का कर्मचारी बन गया। यह व्यवस्था 1992 से लागू हो गई थी। पर राज्य सरकार का कर्मचारी पद पाने के लिए पीटिशनर को वर्षो हाई कोर्ट में मुकदमा लड़ा पड़ा। बहरहाल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 2001 में आदेश दिया कि पीटिशनर को रिक्त पद पर नियुक्ति दी जाए। इस आदेश का अनुपालन करने में भी पांच साल लग गए। डिविजन बेंंच ने आदेश दिया है कि इन पांच सालों के लिए पीटिशनर कहीं से जिम्मेदार नहीं है। इन पांच सालों को अगर उसके कार्यकाल में शामिल किया जाता है तो उसके कार्य की अवधि दस साल से अधिक हो जाएगी। लिहाजा वह पेंशन पाने का हकदार है और उसका पेंशन अविलंब रिलीज किया जाए। अलबत्ता डिविजन बेंच ने इन पांच सालों की अवधि के लिए वह वेतन दिए जाने का दावा नहीं कर सकता है।


SCROLL FOR NEXT