कोलकाता: सरकारी कर्मचारियों को धरना देने के अधिकार को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट से अहम फैसला सामने आया है। हाई कोर्ट की जस्टिस शुभ्रा घोष ने शुक्रवार को इस संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद सरकारी कर्मचारियों को धरना आयोजित करने की अनुमति प्रदान की। इससे पहले पुलिस प्रशासन ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए धरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस शुभ्रा घोष ने संतुलित आदेश पारित करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण धरना और प्रदर्शन नागरिकों का मौलिक अधिकार है, लेकिन इसके साथ ही सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा का ध्यान रखना भी आवश्यक है। अदालत ने धरने की अनुमति तो दी, लेकिन इसके लिए कुछ स्पष्ट शर्तें भी निर्धारित कीं।
अदालत के आदेश के अनुसार, धरना मंदिरतला बस स्टैंड के पास आयोजित किया जा सकेगा, हालांकि पहले प्रस्तावित दस दिनों के स्थान पर केवल पांच दिनों तक ही धरना देने की अनुमति दी गई है। यह धरना 22 दिसंबर से 26 दिसंबर तक चलेगा। इस दौरान किसी भी दिन धरनास्थल पर अधिकतम 200 लोग ही मौजूद रह सकेंगे। इसके अलावा धरने के लिए बनाए जाने वाले मंच का आकार 12x15 फुट से अधिक नहीं होगा।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि धरने के दौरान किसी भी प्रकार का उकसावे वाला या भड़काऊ भाषण नहीं दिया जाएगा। कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी आयोजकों की होगी। आयोजकों को धरने के दौरान व्यवस्था संभालने के लिए कम से कम दस स्वयंसेवकों की सूची पुलिस प्रशासन को देनी होगी, जिसमें उनके नाम और मोबाइल नंबर शामिल होंगे।
अदालत ने धरने के समय को भी निर्धारित किया है। आदेश के अनुसार, धरना प्रतिदिन सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक ही आयोजित किया जा सकेगा। इसके बाद किसी भी प्रकार की गतिविधि की अनुमति नहीं होगी। साथ ही धरना समाप्त होने के 24 घंटे के भीतर आयोजकों को धरनास्थल की पूरी सफाई सुनिश्चित करनी होगी, ताकि आम जनता को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
इस फैसले को सरकारी कर्मचारियों और संगठनों ने राहत के रूप में देखा है। वहीं, हाई कोर्ट के इस आदेश को शांतिपूर्ण प्रदर्शन और सार्वजनिक व्यवस्था के बीच संतुलन स्थापित करने वाला कदम माना जा रहा है।