जितेंद्र, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : एक दंपत्ति के गुजाराभत्ता के मामले में बेटी की उम्र एक बुनियादी सवाल बन गया है। बेटी के पिता और मां के दावे के बीच एक साल का फर्क है। हाई कोर्ट के जस्टिस डॉ. अजय कुमार मुखर्जी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि बेटी की सही उम्र मां ही बता सकती है। बेटी के पिता का दावा है कि वह अब बालिग हो गई है लिहाजा गुजारा भत्ता के मद में उसे दी गई अतिरिक्त रकम वापस दी जाए।
जस्टिस मुखर्जी ने अपने फैसले में कहा है कि बेटी के जन्म के बारे में बताने के लिए मां ही सर्वाधिक उपयुक्त पात्र है। इसलिए फिलहाल गुजारा भत्ता के इस मामले में मां के दावे को ही सही माना जाए। मां के मुताबिक बेटी का जन्म 1997 में 20 अप्रैल को हुआ था। दूसरी तरफ पिता का दावा है कि बेटी का जन्म 1996 में 19 अप्रैल को हुआ था। जन्म तिथि के बाबत मां के बयान के आधार पर ही गुजारा भत्ता के इस मामले का फैसला किया जाएगा। इसके साथ ही कहा है कि अगर यह साबित किया जाता है कि बेटी का जन्म 1996 में हुआ था या 1997 के 20 अप्रैल से पहले हुआ था तो पिता बेटी से गुजारा भत्ता के मद में दी गई अतिरिक्त रकम की वसूली का दावा कर सकता है। बशर्ते कि यह साबित हो जाए कि उसके पास रकम वापस करने का अतिरिक्त श्रोत है। जस्टिस मुखर्जी ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि इस रकम की वसूली पत्नी से नहीं की जा सकती है।