जितेंद्र, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : एक मां की जिद थी कि अपनी बड़ी बेटी को पिता से नहीं मिलने देगी। बेटी की दरख्वास्त थी कि बस एक बार, सिर्फ एक बार, पिता से मिलने दो। घर के दारवाजे बंद थे, लिहाजा अदालत के दारवाजे पर आ गई थी। सिंगल बेंच के फैसले के बाद जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती के डिविजन बेंच में मामले की सुनवायी हो रही थी। इसी दौरान पिता के मरने की खबर आ गई। यह खबर सुनते ही जस्टिस चक्रवर्ती ने कहा ,ओह माई गॉड, और उनकी आंखें नम हो गई। पक्ष और विपक्ष में बहस कर रहे एडवोकेटों के दिमाग पर भी दिल का काबू हो गया और उनकी आंखें भी नम हो गई, आवाज में भी थरथराहट आ गई।
पिता की मौत के बाद मां ने कुबूल कर लिया कि बेटी और बाप के मिलने की राह में वही दीवार बन कर खड़ी थी। पिता संजित चट्टोपाध्याय लंबे समय से बीमार थे। अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। बड़ी बेटी मोम गंगोपाध्याय पिता से मिलने को बार बार अस्पताल जाती थी, पर उसे मिलने नहीं दिया जाता था। लाचार हो कर उसने हाई कोर्ट में रिट दायर की थी। जस्टिस शुभ्रा घोष ने आदेश दिया कि अगर बीमार पिता संजित चट्टोपाध्याय लिखित रूप से मिलने की अनुमति देते हैं तो बड़ी बेटी उनसे मिल सकती है। इस दौरान ही मां ने कोर्ट में एक दस्तावेज पेश करते हुए कहा कि पिता उससे नहीं मिलना चाहते हैं। एक कागज पर मजमून लिखा था और नीचे पिता के अंगुठे का निशान लगा था। इसके खिलाफ जस्टिस चक्रवर्ती के डिविजन बेंच में अपील की गई थी। मोम के एडवोकेट की दलील थी कि पिता पढ़े लिखे व्यक्ति हैं, तो फिर भला वह अंगुठे का निशान क्यों लगाएंगे। उनकी दलील थी कि एक साजिश के तहत मां बड़ी बेटी को पिता से नहीं मिलने दे रही है। पर जस्टिस चक्रवर्ती के फैसला सुनाने से पहले ही नियति ने अपना फैसला सुना दिया और पिता ने इसके साथ ही दुनिया को अलविदा कह दिया।