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दादी का सिर कलम करने वाले नाती को फांसी की सजा नहीं

हाई कोर्ट के डिविजन बेंच ने सुनायी उम्र कैद की सजा

सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : डायन होने का आरोप लगाते हुए नाती ने अपनी दादी का सिर कलम कर दिया था। जिले के सेशन कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनायी थी। हाई कोर्ट के जस्टिस देवांशु बसाक और जस्टिस शब्बार रसीदी के डिविजन बेंच ने फांसी की सजा की समीक्षा करने के बाद इसे उम्र कैद में बदल दिया। डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि अपराधी की उम्र महज 28 साल है। उसका कोई आपराधिक रिकार्ड भी नहीं है। इसके अलावा वह मानसिक रूप से बीमार भी है। लिहाजा फांसी की सजा मुनासिब नहीं हैं। इसलिए इसे उम्र कैद में बदल दिया जाता है।

झारग्राम के सेशन कोर्ट ने अभियुक्त राधाकांत को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनायी थी। उसके खिलाफ अपनी दादी तरुणबाला की हत्या करने का आरोप था। उसने अपनी दादी का सिर कलम कर दिया था। फांसी की सजा को पुष्टि के लिए हाई कोर्ट भेजी गई थी। इसके साथ ही उसके परिवार की तरफ से हाई कोर्ट में इसके खिलाफ अपील भी की गई थी। एडवोकेट प्रियंका अग्रवाल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अभियुक्त अपनी दादी को खींचते हुए काली मंदिर तक ले गया था। वहां जाने के बाद उसने दादी को प्रणाम करने के विवस किया। जैसे ही वे प्रणाम करने को झुकी उसने धारदार हथियार से उसका गला काट दिया। इसके बाद वह कटे हुए सिर को लेकर नाचते नाचते घर आया था। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक उसे यकीन था कि उसकी दादी डायन है। इसलिए उसने उनका बली चढ़ा दिया। डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि मृतका की बेटी, दामाद और पति इस घटना के चश्मदीद गवाह हैं। मेडिकल रिपोर्ट से भी साबित हुआ है कि उसकी हत्या की गई थी। पर रिपोर्ट के मुताबिक अभियुक्त मानसिक रूप से बीमार था। वह अक्सर हिंसक हो जाया करता था। जेल में उसका आचरण सही था। परिवार भी सामाजिक और आर्थिक रूप से दुर्वल है। यह मामला विरल में विरलतम नहीं है, लिहाजा फांसी की सजा रद्द की जाती है।


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