सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : हाई कोर्ट के जस्टिस उदय कुमार ने आधार एक्ट 2016 के तहत दायर एक मामले को खारिज कर दिया। जस्टिस कुमार ने अपने आदेश में कहा है कि किसी कानून को रिट्रोस्पेक्टिवली लागू नहीं किया जा सकता है, यानी कानून के प्रभावी होने की तिथि के पहले से इसे लागू नहीं कर सकते हैं। इस कानून के प्रभावी होने की तिथि के बाद से ही इसके तहत मुकदमा दायर किया जा सकता है।
पीटिशनर के खिलाफ 2014 में आधार एक्ट 2016 के तहत मुकदमा दायर किया गया था। उसके खिलाफ आरोप था कि उसने अपने विकलांग भाई के आधार की पहचान के लिए अपने फिंगर प्रिंट का इस्तेमाल किया था। जस्टिस कुमार ने सवाल किया कि यह घटना आधार एक्ट लागू होने से काफी पहले 2014 में 16 फरवरी को घटी थी। उन्होंने राज्य सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि इस हेराफेरी का पता 2018 में उस समय चला जब यूआईडीएआई के अफसर ने पुरुलिया के मानबाजार थाने में एफआईआर दर्ज करायी थी। आधार केंद्र के एक भीभाड़ वाले सेंटर पर पीटिशनर दुलाल कुंभकार अपने विकलांग भाई सुबल कुंभकार की डाटा दर्ज कराने में मदद कर रहा था। उस वक्त स्टाफ की लापरवाही के कारण यह गड़बड़ी हो गई थी। दूसरी तरफ यूआईडीएआई का दावा था कि जनसांख्यिकी का ब्यौरा देने में गड़बड़ी जानबूझ कर की गई थी। उसके खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत धोखाधाड़ी और जालसाजी का मुकदमा दर्ज कराया गया था। इसके अलावा आईटी एक्ट की धारा 2000 के तहत भी मुकदमा दायर किया गया था। इस गलती का पता चलने के बाद दुलाल ने यूआईडीएआई के अफसरों से इसे सुधारने की अपील की, बेशुमार शिकायतें दर्ज करायी और इनरोलमेंट कराने के लिए बार-बार प्रयास किया। उसकी सारी अपील खारिज कर दी गईं। उसे जब 2019 में 22 मई को आधार कार्ड मिल गया तो उसने यूआईडीएआई के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। पीटिशनर ने 2020 में 16 मार्च को हाई कोर्ट में डिस्चार्ज एप्लिकेशन दायर किया था। जस्टिस कुमार ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि जो व्यक्ति 2015 से लगातार सुधार किए जाने के लिए प्रयास कर रहा था उसके खिलाफ अनैतिक कार्य करने का आरोप लगाए जाने का कोई औचित्य नहीं हैं।