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नींद को नजरअंदाज करना पड़ सकता है भारी, जानें कैसे बचें गंभीर बीमारियों से

रुकावट वाली नींद की बीमारी का समय पर निदान और इलाज है अनिवार्य

कोलकाता : बदलती जीवनशैली, तनाव, अत्यधिक तकनीक का उपयोग और अनियमित दिनचर्या के कारण आज अच्छी नींद लेना चुनौती बनता जा रहा है। नींद की कमी का प्रभाव न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, बल्कि यह संज्ञानात्मक क्षमता, प्रतिरक्षा प्रणाली और उत्पादकता को भी प्रभावित करती है। नींद सिर्फ आराम का साधन नहीं, बल्कि एक स्वस्थ जीवनशैली का आधार है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि नींद को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (रुकावट वाली नींद की बीमारी) जैसी समस्याएं भविष्य में और अधिक गंभीर रूप ले सकती हैं। इसी गंभीर मुद्दे को ध्यान में रखते हुए कलकत्ता स्लीप सोसाइटी और वर्ल्ड स्लीप सोसाइटी द्वारा विश्व नींद दिवस 2025 के अवसर पर "अच्छी नींद को प्राथमिकता बनाएं" थीम के तहत ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया के विभिन्न प्रकारों और उनके निदान एवं उपचार को लेकर गहन चर्चा हुई। कार्यक्रम के दौरान वर्ल्ड स्लीप सोसाइटी के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ. सौरव दास एवं कलकत्ता स्लीप सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. उत्तम अग्रवाल ने बताया कि पहले ओएसए को केवल 45-60 वर्ष के अधिक वजन वाले पुरुषों की बीमारी माना जाता था, लेकिन हाल के शोधों से यह स्पष्ट हुआ है कि यह हर आयु वर्ग और भौगोलिक क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार से पायी जाती है। 45 से 60 वर्ष के लोगों में ओएसए की गंभीरता सबसे अधिक पाई जाती है। हालांकि, 60 से अधिक उम्र के लोगों में रैपिड आई मूवमेंट (रेम) से संबंधित एपनिया कम होता है, जबकि 45 से कम उम्र के लोग रेम रुकावट वाली नींद की बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

"नींद की कमी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है"

डॉ. सौरव दास ने बताया कि रुकावट वाली नींद की बीमारी (ओएसए) की अनदेखी की गयी तो यह कई अन्य गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकती है, जैसे कि हृदय रोग, मधुमेह और मानसिक क्षमता में गिरावट। यदि समय पर निदान और उपचार नहीं किया गया, तो यह एक बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले सकती है। उन्होंने कहा, नींद की कमी केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक सार्वजनिक संकट है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर व्यक्ति को गुणवत्तापूर्ण नींद मिले। डॉ. उत्तम अग्रवाल ने कहा कि रुकावट वाली नींद की बीमारी जैसी समस्याओं से बचने के लिए स्क्रीनिंग प्रोग्राम को बढ़ावा देना और इलाज को अधिक सुलभ बनाना अनिवार्य है। उन्होंने कहा, गुणवत्तापूर्ण नींद अच्छे स्वास्थ्य की नींव है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर व्यक्ति को उचित निदान और इलाज मिले, ताकि रुकावट वाली नींद की बीमारी जैसी समस्याओं को समय रहते रोका जा सके।

महिलाओं में निदान की समस्या :

पुरुषों की तुलना में महिलाओं में रुकावट वाली नींद की बीमारी के मामले कम दर्ज किए जाते हैं, क्योंकि उनके लक्षण अलग और अक्सर अस्पष्ट होते हैं। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में रुकावट वाली नींद की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है, फिर भी निदान की दर कम बनी रहती है।

शहरी बनाम ग्रामीण क्षेत्रों में अंतर:

शहरी क्षेत्रों में ओएसए का प्रसार 19.5% है, जिसका प्रमुख कारण मोटापा और निष्क्रिय जीवनशैली है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 11.2% है, लेकिन यहां 67% से अधिक मामलों का निदान ही नहीं हो पाता है।

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