नयी दिल्ली : गंगा के जल प्रवाह के 1300 वर्ष के रुझानों के विश्लेषण पर आधारित एक अध्ययन में कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों में इस नदी में जलधारा सूखने की जो प्रवृत्ति देखी गयी है वह इस नदी घाटी में जीवन बसर कर रहे लाखों लोगों पर भीषण और अभूतपूर्व प्रभाव डाल सकती है।
जलधारा सूखने की जैसी प्रवृत्ति 1991-2020 तक सबसे ज्यादा
राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की पत्रिका ‘प्रोसीडिंग्स’ में प्रकाशित निष्कर्षों में कहा गया है कि जलधारा सूखने की जैसी प्रवृत्ति ‘1991 से 2020 तक देखने को मिली वैसी पिछली सहस्राब्दी से पहले देखने को नहीं मिली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर और अमेरिका के एरिजोना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने गंगा के सूखने का संबंध दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) के दौरान कम वर्षा से जोड़ा है। दल ने 1991-2020 के दौरान उपकरणों, ऐतिहासिक अभिलेखों और जल प्रवाह के मॉडल के माध्यम से एकत्र किये गये आंकड़ों का उपयोग किया और पिछले 1,300 वर्षों (700-1990 ई.) के जल प्रवाह मॉडल का पुनर्निर्माण किया।
जल और खाद्य सुरक्षा को खतरा
अध्ययन के लेखकों ने कहा कि 60 करोड़ से अधिक लोगों के लिए महत्वपूर्ण गंगा नदी घाटी में (जलधारा के प्रवाह में) गंभीर और अभूतपूर्व कमी की प्रवृत्ति देखी जा रही है, जिससे जल और खाद्य सुरक्षा को खतरा पैदा हो रहा है। दल ने पाया कि 1990 के दशक से गंगा नदी जल प्रवाह के सूखने की जो प्रवृत्ति लगातार लंबे काल से देखी गयी इसकी तुलना 16वीं शताब्दी में इसी तरह जलधारा सूखने से की जा सकती है लेकिन मौजूदा प्रवृत्ति पिछली प्रवृत्ति की तुलना में 76 प्रतिशत अधिक विकट है।
1951-2020 के दौरान वार्षिक स्तर पर वर्षा में 9.5% की गिरावट का अनुमान
इसमें कहा गया कि 1951-2020 के दौरान वार्षिक स्तर पर वर्षा में 9.5 प्रतिशत की उल्लेखनीय गिरावट का अनुमान लगाया गया है, जिसमें भारत के पश्चिमी क्षेत्र में 30 प्रतिशत से अधिक की अधिक गिरावट देखी गयी है।
जलवायु परिवर्तन का असर
लेखकों ने कहा कि भले ही जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में वृद्धि होने की संभावना है, फिर भी हिंद महासागर में तेजी से बढ़ रही गर्मी तथा उपमहाद्वीप में कम होती गर्मी के कारण उत्तर भारत में मानसून कमजोर हो गया है। इसमें कहा गया कि कम वर्षा के कारण भूजल का स्तर नहीं बढ़ पा रहा है।
हिमनदों के पिघलने से होगी जल प्रवाह में और बढ़ोत्तरी !
साथ ही सिंचाई के स्रोतों के तेजी से कम होने के कारण गंगा जल प्रवाह के सूखने से उत्पन्न स्थिति और विकट हो सकती है। पिछले अध्ययनों में इस बात को रेखांकित किया गया था कि जलवायु परिवर्तन की स्थिति जारी रहने से गंगा घाटी में जल प्रवाह में वृद्धि हो सकती है तथा वर्षा बढ़ने एवं हिमनदों के पिघलने से इसमें और बढ़ोत्तरी होगी।
भविष्य में पानी की उपलब्धता को लेकर अनुमान लगाना बहुत जटिल
बहरहाल शोधकर्ताओं ने भविष्य में तापमान में वृद्धि के कारण पानी की उपलब्धता को लेकर अनुमान लगाना बहुत जटिल हो सकता है। पिछले तीन दशकों में देखे गए असामान्य जल प्रवाह के आधार पर लेखकों का अनुमान है कि गंगा नदी के जल प्रवाह में दूसरी सबसे बड़ी कमी 1501-1530 के दौरान आयी होगी।
पिछली सदियों के दौरान
इसी के आधार पर अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया कि उत्तर भारत में 16वीं शताब्दी के आरंभ में जल प्रवाह में कमी बहुत बढ़ गयी होगी। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि गंगा नदी के जल प्रवाह में तीसरी सबसे बड़ी कमी 14वीं शताब्दी के मध्य (1344-1373) में आयी होगी। लेखकों ने कहा कि कुल मिलाकर,1991-2020 के दौरान नदी जल प्रवाह का कम होना अभूतपूर्व है तथा 1,300 वर्षों के पूरे रिकॉर्ड के दौरान ऐसी दो निकटतम दो स्थिति की तुलना में अधिक विकट है।