मुंबई : दिवाली के त्योहार के दौरान पटाखे जलाने से अत्यधिक हानिकारक भारी धातुओं के तत्व हवा में फैल गये। वर्षों के अनुभव और अभियान के बावजूद सरकार जहरीले पटाखों के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को नियंत्रित करने में विफल रही है।
लंबे मानसून की वजह से पटाखों दुष्प्रभाव तुरंत दिखाई देने लगा
गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘आवाज फाउंडेशन’ ने यह दावा करते हुए बताया कि इस साल मानसून की अवधि लंबी रही, जो दिवाली से ठीक पहले तक थी, जिससे पटाखों का प्रभाव वायु गुणवत्ता के स्तर में तीव्र गिरावट के रूप में तुरंत दिखाई देने लगा। मुंबई से संचालित एनजीओ ने राज्य सरकार पर जहरीले पटाखों के उपयोग को नियंत्रित करने और नागरिकों को उनके प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों से बचाने में विफल रहने का आरोप लगाया।
25 तरह के पटाखों की जांच की गयी
'आवाज फाउंडेशन' ने इसी के साथ विभिन्न कंपनियों द्वारा उत्पादित 25 तरह के पटाखों की सूची जारी की जिनकी इस साल जांच की गयी और उनमें हानिकारक धातु पायी गयी। उसने दावा किया कि अनिवार्य होने के बावजूद इन पटाखों पर न तो होने वाले शोर की जानकारी दी गयी थी और न ही ‘क्यूआर कोड’ अंकित था। कई पटाखों पर छपी रासायनिक संरचना परीक्षण के दौरान पाई गयी वास्तविक सामग्री से काफी भिन्न थी।
बताया कुछ पर दिखा कुछ और
उदाहरण के लिए ब्लूबेरी पटाखों के लेबल पर इनकी संरचना पोटैशियम नाइट्रेट (55 प्रतिशत), एल्युमीनियम (20 प्रतिशत), सल्फर (15 प्रतिशत), और जिओलाइट (10 प्रतिशत) बतायी गयी थी जबकि प्रयोगशाला विश्लेषण में पाया गया कि इनमें एल्युमीनियम (36.571 प्रतिशत), पोटैशियम (16.85 प्रतिशत), सल्फर (4.045 प्रतिशत), सिलिकॉन (0.148 प्रतिशत) और ऑक्सीजन (42.249 प्रतिशत) है।