नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय द्वारा लगभग पांच महीने पहले मंजूरी दिये जाने के बावजूद विभिन्न उच्च न्यायालय लंबित आपराधिक मामलों से निपटने के लिए तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर इच्छुक नहीं दिख रहे हैं। देश में 25 उच्च न्यायालय हैं लेकिन 11 जून तक किसी भी उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है।
तदर्थ नियुक्ति के नामों की सिफारिश नहीं की
आधीकारिक सूत्रों के अनुसार उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया से वाकिफ लोगों के अनुसार अभी तक किसी भी उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने तदर्थ न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किये जाने वाले सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के नाम की सिफारिश नहीं की है। उच्चतम न्यायालय ने 18 लाख से ज्यादा आपराधिक मामलों के लंबित रहने को देखते हुए 30 जनवरी को उच्च न्यायालयों को तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की इजाजत दे दी थी, बशर्ते इनकी संख्या अदालत के लिए स्वीकृत कुल न्यायाधीशों के पदों के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं हो।
अनुच्छेद 224ए देता है तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की इजाजत
संविधान का अनुच्छेद 224ए लंबित मामलों से निपटने में मदद के लिए उच्च न्यायालय में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को तदर्थ न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करने की इजाजत देता है। तय प्रक्रिया के अनुसार संबंधित उच्च न्यायालय का कॉलेजियम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किए जाने वाले उम्मीदवारों के नाम या सिफारिशें कानून मंत्रालय के न्याय विभाग को भेजता है। इसके बाद न्याय विभाग उम्मीदवारों की जानकारी और विवरण जोड़ता है और फिर उन्हें उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम को भेजता है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय का कॉलेजियम अंतिम फैसला लेता है और सरकार को चयनित व्यक्तियों को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करता है। राष्ट्रपति नवनियुक्त न्यायाधीश की ‘नियुक्ति के वारंट’ पर हस्ताक्षर करते हैं। अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया वही रहेगी, सिवाय इसके कि राष्ट्रपति नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे लेकिन अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की सहमति ली जायेगी।