राज राजेश्वरी मंदिर में गुरु पूर्णिमा के दौरान ली गई तस्वीर 
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राज राजेश्वरी मंदिर में गुरु पूर्णिमा पर उमड़ी भक्तों की भीड़

हुगली : कोन्नगर स्थित राज राजेश्वरी मंदिर में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर भारी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ी। मंदिर परिसर में नगर भंडारे का आयोजन किया गया। हजारों की संख्या में भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया। ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज द्वारा स्थापित श्री राजराजेश्वरी सेवा मठ में गुरु पूर्णिमा पर गुरु स्वरूप दो पीठों के शंकराचार्य रह चुके स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की पूजा अर्चना की गई। मठ के प्रभारी सच्चित स्वरूप ब्रह्मचारी ने बताया कि महर्षि वेदव्यास प्रथम गुरु हैं। उन्होंने चार वेदों को विभाजित किया था ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों के अध्ययन से सनातन धर्म का प्रचार प्रसार सुगम हुआ। इसलिए उन्हें वेदव्यास कहा जाता है। वेदव्यास ने महाभारत जैसे विश्व के सबसे बड़े महाकाव्य की रचना की जिसमें भगवद्गीता जैसे दिव्य उपदेश हैं। यह ग्रंथ केवल एक युद्ध कथा नहीं बल्कि धर्म, योग, नीति और जीवन के दर्शन का मार्ग भी है। गुरु पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास के सम्मान में मनायी जाती है। उसी परंपरानुसार करपात्री जी महाराज के बाद जगत गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने उसे आगे बढ़ाया। शंकराचार्य ने 28 वर्ष पूर्व कोन्नगर में चौसठ योगिनी सहित माता राज राजेश्वरी की मंदिर की स्थापना की। उन्होंने आगे कहा कि गुरु तीन प्रकार के होते हैं। पहला गुरु माता होती है, जो बच्चों में संस्कार भरती है, दूसरा गुरु शिक्षक होते हैं, जो साक्षर करते हैं और तीसरा गुरु अध्यात्म गुरु होते हैं, जो जीवन के उद्देश्य और परमार्थ की जानकारी देते हैं। इसलिए सनातन धर्म में गुरु तत्व का महत्व बताया गया है। अंधेरे से रोशनी में लाने वाले ही गुरु होते हैं। इस दृष्टि से हमलोग भाग्यशाली हैं, हमें जगत गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जैसे गुरु मिले। आज की गुरु पूर्णिमा कई कारणों से अति महत्वपूर्ण है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। इसमें साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

मौके पर सेवा मठ के उप प्रभारी श्रीधर द्विवेदी सहित अन्य वैदिक विद्वानों ने यहां आज गुरु की चरण पादुका का पूजन किया। इस अवसर पर पूरे विश्व में शांति की कामना की गई। उन्होंने कहा कि वेदव्यास को 18 पुराणों और उपपुराणों का रचयिता भी माना जाता है, जिनके मध्यम से धार्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक ज्ञान का प्रसार हुआ। वेदव्यास ने गुरु -शिष्य परंपरा की नींव रखी थी। उसी परम्परा के अनुसार हजारों वर्षों से सनातन धर्म बचा हुआ है।

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