नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने उस शख्स की उम्रकैद की सजा को खारिज कर दिया, जिसे हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। यह फैसला इस आधार पर लिया गया कि अपराध के समय उसकी मानसिक स्थिति संदिग्ध थी।
मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति को किसी क्रिमिनल केस में दोषी नहीं ठहराया जा सकता
न्यायमूर्ति एएस ओका की अगुआई वाले पीठ ने कहा कि एक मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति को किसी क्रिमिनल केस में दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि वह खुद के बचाव की स्थिति में नहीं होता। खुद का बचाव करना संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार है। पीठ ने 8 मई को दिये फैसले में कहा कि कानून कहता है कि पागल व्यक्ति द्वारा किया गया कोई भी कृत्य अपराध नहीं होता। इसका कारण यह है कि वह खुद का बचाव करने की स्थिति में नहीं होता। याची को 27 सितंबर, 2018 की एक घटना के लिए दोषी ठहराया गया था।
पाइप से सिर पर किया था हमला
यह मामला छत्तीसगढ़ का है। उस दिन असम गोता और अभियोजन पक्ष का गवाह फागू राम करंगा एक खेत में घास काट रहे थे। पुलिस के अनुसार इसी दौरान अपीली लोहे का पाइप लेकर वहां पहुंचा और असम गोता के सिर पर हमला किया। जब गवाह भागा तो अपीली ने उसका पीछा किया। ट्रायल कोर्ट ने अपीली को दोषी ठहराकर उम्रकैद की सजा सुनायी, जिसे उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा। उच्च न्यायालय में याची ने कहा कि घटना के दिन वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था और इसके पर्याप्त प्रमाण थे लेकिन उच्च न्यायालय ने यह तर्क 7 दिसंबर, 2023 को किये गये मेडिकल परीक्षण के आधार पर खारिज कर दिया, जिसमें उसकी मानसिक स्थिति सामान्य पायी गयी थ
अपीली ने दिया गवाहों का हवाला
उच्चतम न्यायालय में अपीली के वकील ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों का हवाला दिया, जिन्होंने कहा था कि घटना के समय अपीली की मानसिक स्थिति अस्थिर थी। वकील ने दह्याभाई छगनभाई ठाकोर बनाम गुजरात राज्य और रूपेश मैनेजर (थापा) बनाम सिक्किम राज्य के मामलों का हवाला देकर यह तर्क दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 84 के तहत बचाव के लिए केवल उचित संदेह ही पर्याप्त होता है।