सन्मार्ग संवाददाता
श्री विजयपुरम : अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह के उपराज्यपाल को संबोधित एक पत्र में अंडमान एवं निकोबार प्रादेशिक कांग्रेस कमेटी की प्रचार समिति के अध्यक्ष टीएसजी भास्कर ने प्रस्तावित ग्रेट निकोबार द्वीप विकास परियोजना को लेकर गहरी चिंताएं व्यक्त की हैं। यह पत्र भारत के प्रधानमंत्री और प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों सहित वरिष्ठ सरकारी गणमान्य व्यक्तियों को भी भेजा गया है, जिसमें संभावित रूप से अपरिवर्तनीय प्रभावों के मद्देनजर परियोजना को तत्काल रोकने और इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया है। भास्कर ने इस परियोजना की आलोचना करते हुए कहा है कि यह एक जल्दबाजी और गलत तरीके से सोची-समझी पहल है, जो बड़े प्राकृतिक और मानवीय आपदा का कारण बन सकती है। उन्होंने चेतावनी दी कि निवेश और बुनियादी ढांचे में प्रगति के नाम पर चलाई जा रही इस परियोजना में न तो पर्याप्त वैज्ञानिक परीक्षण किए गए हैं और न ही नैतिक पहलुओं पर विचार किया गया है, विशेषकर द्वीप की मूल जनजातीय समुदायों के संदर्भ में। उनका मुख्य विरोध इस दावे पर आधारित है कि यह परियोजना स्थानीय जनजातीय लोगों के जीवन और आजीविका को गंभीर खतरे में डालती है, विशेषकर शॉम्पेन जनजाति को जो पीढ़ियों से द्वीप के पारिस्थितिक तंत्र के साथ सामंजस्य में जीवन जीती आ रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि जनजातीय परिषद से प्राप्त “अनापत्ति प्रमाण पत्र” पूर्ण जानकारी दिए बिना हासिल किया गया है और यह शॉम्पेन जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं करता, जिन्हें परामर्श प्रक्रिया में शामिल ही नहीं किया गया। उन्होंने आगे चेतावनी दी कि यह परियोजना इस असुरक्षित जनजाति के विलुप्त होने तक का कारण बन सकती है।
पर्यावरणीय और पारिस्थितिक चिंताओं को भी समान तात्कालिकता के साथ उठाया गया। प्रस्तावित विकास परियोजना का दायरा संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र तक फैला हुआ है, जो लेदरबैक कछुए, खारे पानी के मगरमच्छ और निकोबार लांग-टेल मकाक जैसे दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों का घर है। भास्कर ने तर्क दिया कि इस परियोजना का पारिस्थितिक पदचिह्न विनाशकारी जैव विविधता हानि और दीर्घकालीन पर्यावरणीय गिरावट का कारण बन सकता है। विशेष रूप से चिंताजनक है कि यह परियोजना अत्यधिक भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र में हर 50–60 वर्षों में भीषण भूकंप और सुनामी आने का ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। भास्कर के अनुसार पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट में किसी भी प्रकार का व्यापक वैज्ञानिक आपदा जोखिम मूल्यांकन शामिल नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी कि भविष्य में किसी भी भूकंपीय गतिविधि से यह अधोसंरचना तबाह हो सकती है, जिससे न केवल वित्तीय नुकसान होगा बल्कि मलबे, तेल रिसाव और रासायनिक रिसाव जैसी पर्यावरणीय आपदाएं भी उत्पन्न होंगी जो पारिस्थितिक तंत्र को स्थायी रूप से नुकसान पहुँचाएँगी। उन्होंने पेड़ों की गिनती और कटाई को लेकर गंभीर संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि आधिकारिक रूप से बताए गए 10 लाख पेड़ों की संख्या भ्रामक है और परियोजना शुरू होने के बाद यह संख्या कहीं अधिक हो जाएगी। हरियाणा में पेड़ लगाने के विचार को उन्होंने “हास्यास्पद” बताया और कहा कि इसमें न तो कोई वैज्ञानिक आधार है और न ही क्षेत्रीय पारिस्थितिकी से कोई संबंध। रणनीतिक दृष्टि से, पत्र में एक अधिक टिकाऊ विकल्प सुझाया गया—नए ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे और बस्ती के निर्माण के बजाय मौजूदा नौसेना हवाई पट्टी का विस्तार किया जाए ताकि रक्षा और क्षेत्रीय सुरक्षा की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। द्वीपसमूह की वर्तमान जनसंख्या लगभग 4.5 से 5 लाख है और भास्कर ने प्रशासन की आलोचना करते हुए कहा कि यह अपने मौजूदा निवासियों को स्वास्थ्य सेवा, पानी, सड़क और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाएँ तक देने में विफल रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब वर्तमान निवासियों की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो रही हैं तो 4 लाख अतिरिक्त लोगों को बसाने के लिए उपग्रह शहर बनाने का क्या तुक है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण नीतियों में कथित विसंगतियों पर भी चिंता जताई।