बदलते मौसम का मिजाज, कहीं सूखा कहीं सैलाब climate_change
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जलवायु परिवर्तन और प्रबल हो रहा, भविष्य मे बढ़ते तापमान में ‘ला नीना’ शायद ही प्रभावी हो!

आईएमडी और आईआईटी मौसम विशेषज्ञों ने किया आगाह

नयी दिल्ली : विज्ञानियों ने आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन अधिक तेजी और प्रबल तरीके से हो रहा है और भविष्य में बढ़ते तापमान की वजह से बहुत संभव है कि शीतलन का कार्य करने वाली धारा ‘ला नीना’ प्रभावी नहीं हो। विज्ञानियों ने देश के बड़े हिस्से में वर्तमान गर्मी की प्रवृत्ति का आकलन करते हुए यह चेतावनी दी है।

124 साल की सबसे गर्म फरवरी

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस वर्ष समय से पहले गर्मी पड़ने, सामान्य से अधिक तापमान तथा तीव्र व लंबे समय तक लू चलने की भविष्यवाणी की है। आईएमडी के अनुसार देश में 1901 के बाद से इस साल सबसे गर्म फरवरी दर्ज किया गया और 2001 के बाद से पिछले महीने पांचवीं सबसे कम वर्षा हुई। विज्ञानियों ने कहा कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन तेजी से गर्म सर्दियों और छोटे वसंत द्वारा चिह्नित एक नयी सामान्य स्थिति को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने मौसम की इस प्रवृत्ति में वार्षिक परिवर्तनों की ओर भी ध्यान आकर्षित कराया, जिन्हें ‘वर्ष-दर-वर्ष परिवर्तनशीलता’ कहा जाता है।

इस बार असामान्य रूप से शुष्क सर्दी थी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बंबई के जलवायु अध्ययन केंद्र की एसोसिएट प्रोफेसर अर्पिता मंडल ने बताया कि उदाहरण के लिए इस वर्ष आईएमडी की ताजा जानकारी से पता चलता है कि यह असामान्य रूप से शुष्क सर्दी थी। उन्होंने बताया कि बारिश एक प्राकृतिक शीतलन प्रक्रिया है जो तापमान को कम करने में मदद करती है।

दिसंबर-फरवरी के दौरान गर्म और सर्द तापमान विसंगतियों की लहर

आईआईटी बंबई में पृथ्वी प्रणाली विज्ञानी और प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे ने कहा कि मैं दिसंबर-फरवरी के दौरान गर्म और सर्द तापमान विसंगतियों (अपेक्षित परिपाटी से विचलन) की एक वैश्विक लहर देख रहा हूं जो जेट धाराओं के उतार-चढ़ाव से संबंधित हैं। जेट धाराएं वायुमंडल के ऊपरी स्तरों में बहने वाली तेज हवाएं हैं जो उत्तर और दक्षिण की ओर घूमकर मौसम को प्रभावित करती हैं।

‘कमजोर’ ला नीना के ‘अल्पकालिक’ होने की संभावना

इस सप्ताह विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अधिसूचित किया कि दिसंबर 2024 में उभरने वाला ‘कमजोर’ ला नीना के ‘अल्पकालिक’ होने की संभावना है। आईआईटी गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग के चेयर प्रोफेसर विमल मिश्रा ने कहा कि इसके अलावा ‘अल नीनो’ और ‘ला नीना’ - ‘ईएनएसओ’ (अल नीनो एक आवर्ती जलवायु परिपाटी है जिसमें मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में पानी के तापमान में परिवर्तन शामिल है) भी समग्र प्रवृत्तियों में योगदान करते हैं।

प्रबल ‘ला नीना’ में देखने को मिलेंगे अधिक ठंडे दिन

मिश्रा ने कहा कि इसलिए ‘अल नीनो’ जैसी परिस्थितियों में आपको सर्दियों के तुरंत बाद गर्म वसंत या गर्म तापमान देखने को मिलेगा जबकि यदि ‘ला नीना’ प्रबल होता है, तो आपको अधिक संख्या में ठंडे दिन देखने को मिलेंगे। विश्व का अधिकांश मौसम ‘अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ (ईएनएसओ) से महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होता है, जिसमें प्रशांत महासागर में तापमान और वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन शामिल होता है। ईएनएसओ चक्र ‘अल नीनो’ - गर्म चरण जो गर्म समुद्री तापमान से जुड़ा होता है - और इसके समकक्ष ‘ला नीना’ के बीच दोलन करता है, जो हर बार एक तटस्थ चरण के माध्यम से संक्रमण करता है। एक चक्र आम तौर पर 2-7 वर्षों के बीच रहता है।

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