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रिटायरमेंट के बाद कोई पद नहीं लूंगा : जस्टिस खन्ना

‘मुझे यकीन है कि जस्टिस गवई बुनियादी सांविधानिक सिद्धांतों को कायम रखेंगे’

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय में अपने अंतिम कार्यदिवस पर मिले भरपूर सम्मान से अभिभूत भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मंगलवार को कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उनके उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति बी आर गवई सर्वोच्च न्यायालय के मूल्यों, मौलिक अधिकारों और बुनियादी संवैधानिक सिद्धांतों को कायम रखेंगे। न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन एक बड़ा ऐलान भी किया कि सेवा से अवकाश ग्रसण करने के बाद वे कोई पद नहीं लेंगे।

न्यायपालिका में केवल जज ही नहीं, बार भी अहम

विदाई से जुड़े इस रस्मी पीठ में निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति संजय कुमार शामिल थे। इस अवसर पर न्यायमूर्ति खन्ना को न केवल उनके योगदान के लिए बल्कि उनके चाचा और शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच आर खन्ना की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए भी सराहा गया। निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश ने 14 मई को प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार संभालने जा रहे न्यायमूर्ति गवई को अपना ‘सबसे बड़ा सहयोगी’ कहा और उनके नेतृत्व और सांविधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता पर विश्वास व्यक्त किया।

न्यायपालिका में बिताये अपने समय को याद किया

अपने विदाई भाषण में न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायपालिका में बिताये अपने समय को याद करते हुए आभार व्यक्त किया और कहा कि मैं अपने साथ बहुत सारी यादें लेकर जा रहा हूं। यादें जो बहुत अच्छी हैं और जीवन भर मेरे साथ रहेंगी। जनता का विश्वास जीतने में बार और पीठ की भूमिका पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में केवल न्यायाधीश ही नहीं होते, इसमें बार भी शामिल है। आप व्यवस्था के सचेत रखवाले हैं।

रिटायरमेंट के बाद क्या करेंगे जस्टिस खन्ना ने बताया

मीडिया कर्मियों से अनौपचारिक बातचीत में एक सवाल के जवाब में न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि मैं सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद स्वीकार नहीं करूंगा लेकिन संभवतः कानून के क्षेत्र में कुछ करूंगा। यशवंत वर्मा विवाद के मामले में जब पूछा गया कि उस विवाद के वक्त आपके मन में क्या चल रहा था। तब उन्होंने कहा कि न्यायिक सोच को निर्णायक और न्याय निर्णायक होना चाहिए। हम किसी भी मुद्दे के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को देखते हैं और फिर तर्कसंगत रूप से निर्णय लेते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम निर्णय लेते हैं। फिर भविष्य ही बताता है कि जो निर्णय लिया वह कैसा था। अपने चाचा जस्टिस एसआर खन्ना को याद करते हुए कहा कि उनके केशवानंद भारती जजमेंट और एडीएम जबलपुर का फैसला हुए 40-45 साल हो चुके लेकिन अभी भी हर मुद्दे पर याद किया जाता है और प्रासंगिक है।

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