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चाय उद्योग में संतुलन जरूरी : असम मुख्य सचिव

बड़े और छोटे उत्पादकों को साथ मिलकर चलना होगा

केडी पार्थ, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : असम के मुख्य सचिव रवि कोटा ने कहा कि चाय उद्योग में मौजूदा दोहरी संरचना- यानी बड़े संगठित बागानों और छोटे चाय उत्पादकों (एसटीजी)- दोनों का संतुलित सह-अस्तित्व आवश्यक है ताकि उद्योग का दीर्घकालिक अस्तित्व बना रहे। उन्होंने कहा कि असम, जो भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है और देश की वार्षिक फसल का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा देता है, वहां दोनों क्षेत्रों को एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाए बिना साझा रूप से आगे बढ़ना चाहिए।

दोहरी संरचना बनी रहे व्यवहार्य

भारतीय चाय संघ (आईटीए) की वार्षिक आम बैठक में रवि कोटा ने कहा, बड़े संगठित क्षेत्र को बागान अधिनियम के तहत कल्याणकारी दायित्व निभाने होते हैं, जबकि छोटे उत्पादकों को नहीं। फिर भी दोनों क्षेत्रों को व्यवहार्य रहना चाहिए और उद्योग में बने रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि चाय के लिए न्यूनतम स्थायी मूल्य (MSP) तय करने की दिशा में ठोस मॉडल तैयार करने की जरूरत है ताकि उत्पादकों को उचित पारिश्रमिक मिल सके। कोटा ने चाय के आयात के संदर्भ में कहा कि मूल स्रोत का खुलासा अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि गुणवत्ता और बाजार की निष्पक्षता बनी रहे।

आईटीए अध्यक्ष ने जताई चिंताएं

आईटीए अध्यक्ष हेमंत बांगड़ ने कहा कि उद्योग को मूल्य अस्थिरता, श्रम की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि उच्च उत्पादन लागत के कारण संगठित चाय क्षेत्र का संचालन धीरे-धीरे अव्यवहारिक होता जा रहा है। बांगड़ ने समान अवसर देने, पारंपरिक चाय उत्पादन को प्रोत्साहित करने और RoDTEP दर बढ़ाने की मांग की।

विशेष वित्तीय पैकेज की मांग

बांगड़ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सीधा असर चाय उत्पादन पर दिख रहा है। उत्तर बंगाल में हाल की भारी बारिश और भूस्खलन ने उत्पादन को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा, दार्जिलिंग चाय उद्योग को संकट से उबारने के लिए सरकार को विशेष वित्तीय पैकेज देना चाहिए।

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