फिल्म निर्देशक रमेश सिप्पी 
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भारतीय सिनेमा शाश्वत है : रमेश सिप्पी

कहा, कला और व्यवसाय में संतुलन बेहद जरूरी

कोलकाता: वरिष्ठ फिल्मकार रमेश सिप्पी ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय सिनेमा आज भी 'पूरी तरह जिंदा' है। नई पीढ़ी के फिल्मकारों को अपने दिल और सपनों का अनुसरण करते हुए कला और व्यवसाय के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए। वे 31वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में सत्यजीत रे मेमोरियल लेक्चर दे रहे थे।

शिशिर मंच पर अपनी पत्नी किरण सिप्पी और फिल्मकार गौतम घोष के साथ उपस्थित सिप्पी ने अपने फिल्मी सफर की यादें साझा कीं और ‘शोले’ के निर्माण से जुड़ी दिलचस्प घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, फिल्म निर्माण एक टीमवर्क है। यह अकेले किसी का काम नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि कैसे उनके सिनेमेटोग्राफर द्वारका दिवेचा से लेकर सेट संभालने वाले अजीज भाई जैसे लोग, जिनका नाम क्रेडिट में नहीं था, सबने ‘शोले’ को महान बनाया।

सिप्पी ने बताया कि फिल्म में गब्बर सिंह द्वारा नरसंहार वाले दृश्य को शूट करने में 23 दिन लगे क्योंकि मौसम बार-बार बदल रहा था। वहीं जया और अभिताभ बच्चन का दीप जलाने वाला सांझ का दृश्य 15-20 रातों में फिल्माया गया, क्योंकि हर शाम केवल एक शॉट ही लिया जा सकता था। उन्होंने कहा, आज डिजिटल युग में काम आसान है, लेकिन उस समय हर फ्रेम मेहनत से बनता था।

उन्होंने छात्रों और युवा फिल्मकारों से कहा, अच्छी फिल्में देखिए, प्रेरणा लीजिए, लेकिन अपनी राह खुद बनाइए। अपने दिल और दिमाग की सुनिए, कला और व्यापार के बीच संतुलन बनाए रखिए। सिप्पी ने सलीम–जावेद को शानदार और सर्वश्रेष्ठ लेखक बताते हुए उनके योगदान को सराहा।

81 वर्षीय सिप्पी ने मुंबई और बंगाल के बीच सहयोग की संभावना पर भी उत्साह जताया। उन्होंने कहा कि यदि अच्छे प्रस्ताव प्राप्त हुए तो वे बंगाल की धरती पर कुछ रचनात्मक कार्य करने के लिए तत्पर रहेंगे। यहां तक कि मुख्यमंत्री ने भी हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

सिप्पी ने यह भी कहा कि हालांकि उन्होंने सत्यजीत रे से कभी मुलाकात नहीं की, लेकिन उन्हें पता था कि रे 'शोले' के बहुत बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने हाल ही में दिवंगत हुए 'जेलर' असरानी को भी उनकी यादगार भूमिका के लिए याद किया और कहा कि वह निश्चित रूप से इस व्याख्यान को सांसारिकता से परे कहीं और से देख रहे हैं।

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