कोलकाता : देवों के देव महादेव की पूजा के लिए सावन का महीना सबसे उत्तम माना जाता है। सावन में भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना अनेक मनोरथों को पूर्ण करने वाली मानी गई है। इस माह में शिवलिंग का अभिषेक शुभ फलदाई माना गया है। 17 जुलाई 2023 को सावन माह का दूसरा सोमवार है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। श्रद्धालु इस दिन शिवालयों में पहुंचकर भगवान शिव का जलाभिषेक और पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न कर रहे हैं। सावन महीने का प्रत्येक सोमवार व्रत और पूजा के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि सावन सोमवार के दिन व्रत रख कर महादेव की आराधना करने से भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं।
सावन के दूसरे सोमवार पर पूजा विधि और शुभ मुहूर्त…
सावन के दूसरे सोमवार पर इस विधि से करें पूजासावन के दूसरे सोमवार पर सुबह स्नान के बाद व्रत और शिवजी की पूजा का संकल्प लें।सुबह शुभ मुहूर्त में किसी शिव मंदिर में जाकर या घर ही शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करें।गंगाजल या दूध से शिवजी का अभिषेक करें। इसके बाद भगवान शिव शम्भू को को चंदन, अक्षत, सफेद फूल, बेलपत्र, भांग की पत्तियां, शमी के पत्ते, धतूरा, भस्म और फूलों की माला अर्पित करें। इसके बाद शिव जी को शहद, फल, मिठाई, शक्कर, धूप-दीप अर्पित करें। शिव चालीसा का पाठ और सोमवार व्रत कथा का पाठ करें। आखिर में शिवलिंग के समक्ष घी का दीपक जलाएं और भोलेनाथ की आरती करें।
सावन सोमवार का महत्व
सावन मास भगवान शिव का प्रिय महीना है। इस माह के सभी सोमवार बहुत उत्तम माने जाते हैं। इस दिन जो व्यक्ति सच्चे मन से सावन सोमवार का व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
शिवजी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥