नई दिल्ली: कानून बीयर को प्रभावित करता है और बीयर कानून को। दोनों के बीच का संबंध जितना माना जाता है, उससे कहीं अधिक गहरा है। हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘बीयर लॉ’ में इस आपसी रिश्ते को रेखांकित किया गया है। गर्मियों की छुट्टियों में ठंडी बीयर का आनंद लेते समय, इन पहलुओं पर भी गौर किया जा सकता है।
सभ्यता की शुरुआत में बीयर की भूमिका
आम तौर पर माना जाता है कि मानव समाज शिकारी-संग्रहकर्ता जीवन से खेती और स्थायी बसावट की ओर इसलिए बढ़ा ताकि अनाज से रोटी और दलिया बनाया जा सके। लेकिन आधुनिक विज्ञान संकेत देता है कि शुरुआती दौर में फसलें भरोसेमंद खाद्य स्रोत नहीं थीं। माना जा रहा है कि शराब, विशेषकर बीयर के एक प्रारूप के उत्पादन के लिए ही हमारे पूर्वज किसान बने। ऐसे में कहा जा सकता है कि मानव सभ्यता के विकास में बीयर ने अहम भूमिका निभाई।
कभी बेहद सख्त थे बीयर से जुड़े कानून
कम से कम 13,000 वर्षों से बीयर बनाई जा रही है और बीयर कानून भी उतना ही पुराना विषय है। लगभग 4,000 वर्ष पहले, 1755–1751 ईसा पूर्व के बेबीलोनियन हम्मूराबी संहिता में बीयर परोसने के नियम थे। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई बीयर विक्रेता उसमें पानी मिलाता पाया जाता, तो उसे डुबोकर मारने का प्रावधान था।
सरकार की कमाई का जरिया
बीयर पीने वालों पर कानून का सबसे सीधा असर कीमत के रूप में पड़ता है। बीयर की कीमत का एक बड़ा हिस्सा कर के रूप में सरकार के पास जाता है। यह कोई नई बात नहीं है। हजारों वर्षों से बीयर पर कर लगाया जाता रहा है। राजस्व बढ़ाने के लिए कर बढ़ाए गए और चुनावों जैसे मौकों पर लोकप्रियता पाने के लिए कर घटाए भी गए। अलग-अलग दौर में बीयर के उपभोग, उत्पादन और यहां तक कि इसके अवयवों पर भी कर लगाया गया, जिससे बीयर के प्रकारों में बदलाव देखने को मिला।
प्रतिबंध और नियंत्रण
कानून के जरिए बीयर पर प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। कई मुस्लिम देशों में बीयर सहित शराब प्रतिबंधित है। कुछ देशों में यह प्रतिबंध आधुनिक काल तक जारी रहा। उदाहरण के लिए, आइसलैंड में 1 मार्च 1989 तक बीयर पर रोक थी। आज अत्यधिक शराब सेवन के दुष्प्रभावों को देखते हुए उत्पादन, विपणन और बिक्री पर कई तरह के नियंत्रण लागू हैं। हालांकि इतिहास बताता है कि अलग-अलग समय और परिस्थितियों में बीयर को कभी स्वास्थ्यवर्धक तो कभी हानिकारक माना गया।
शुद्धता कानून और रचनात्मकता की बहस
दुनिया के सबसे प्रसिद्ध बीयर कानूनों में जर्मनी का ‘बीयर शुद्धता कानून’ (1516) शामिल है, जिसमें बीयर में केवल पानी, हॉप्स और जौ के उपयोग का प्रावधान है। हालांकि वास्तव में बीयर बनाने के लिए यीस्ट की भी जरूरत होती है। इससे यह सीख मिलती है कि किसी भी नियम को बनाते समय तकनीकी वास्तविकताओं को समझना जरूरी है। आज बीयर प्रेमी और निर्माता परंपरावादियों और नवाचार समर्थकों—दो खेमों में बंटे नजर आते हैं।
संस्कृति का अभिन्न हिस्सा
बीयर सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। बेल्जियम की बीयर परंपरा और चेक गणराज्य में हॉप्स की खेती को यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल किया गया है। कई देश ‘बीयर देश’ माने जाते हैं। वहीं फिनलैंड में ‘काल्सारिकैन्नी’ जैसी अवधारणा है जहां बिना बाहर जाए घर पर बीयर पीने की परंपरा भी चर्चा में रही है। इस तरह, बीयर और कानून का रिश्ता न केवल इतिहास से जुड़ा है, बल्कि आज की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना को भी प्रभावित करता है।