मानसिक स्वास्थ्य आमतौर पर तनाव से प्रभावित होता है। तनाव का असर स्त्रियों और पुरूषों पर अलग-अलग प्रकार से होता है। महिलाओं में कुंठा या अवसाद आमतौर पर पाई जाने वाली तनाव संबंधी बीमारियां हैं। इस तरह पांच में से तीन महिलाएं इनसे पीड़ित होती हैं।हिस्टीरिया अन्य कम पाई जाने वाली बीमारियों में से एक है। सीजोफ्रेनिया तथा आर्गेनिक साइकोसिस गंभीर बीमारियां हैं। दूसरी ओर, जिन मानसिक बीमांरियों से पुरुष अक्सर पीड़ित होते हैं। वे मद्यपान या नशीली वस्तुओं के सेवन से संबंध रखती हैं।
हर दस महिलाओं में से एक महिला मानसिक तनाव की शिकार अपने आपको असंतुलित महसूस कर रही है यद्यपि सामाजिक स्तर के कारण बहुत सी महिलाएं इस पीड़ा को चुपचाप सहन करती रहती हैं और जब तक यह समस्या गंभीर रूप धारण कर ले, तब तक इन्हें न तो समझा जाता है और न ही इनका निराकरण किया जाता है।
महिलाओं की मानसिक दशा एवं असंतुलन के लिए कई कारण गिनाये गये हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
सामान्य शारीरिक प्रक्रिया एवं जीवन स्थिति में परिवर्तन:- माहवारी, गर्भधारण, प्रसूति और रजोनिवृत्ति, खासतौर पर तनावपूर्ण परिस्थतियां हैं। बहुत-सी महिलाएं इन परिवर्तनों एवं परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढाल लेती हैं किंतु कुछ के लिए ये परिवर्तन अकारण ही तनाव पैदा करते हैं या मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।
निम्न सामाजिक स्तर के कारण अधिकतर महिलाएं शक्तिविहीन हो जाती हैं और इसके साथ ही गरीबी उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पुरुषों की अपेक्षा अधिक बुरा प्रभाव डालती हैं-
शहरीकरण:- भीड़-भाड़ सामाजिक परिवेश, सामाजिक सहायता की कमी और नकारात्मक जीवन घटनाएं, नौकरी से हाथ धोना जैसे कारण मानसिक तनाव को उत्पन्न करते हैं या बढ़ाते हैं।
बचपन:- मानसिक तनाव व कुण्ठा बचपन से ही लड़की पर प्रभाव डालते हैं। लड़की होना ही तनाव का सबसे बड़ा कारण है। इसके कारण उसे सही ढंग से खाना, पढ़ाई, समय से डॉक्टरी सहायता, सबसे बढ़कर प्यार और देखभाल नहीं मिल पाती। दूसरे छोटी लड़कियों का यौन शोषण भी जो आजकल बहुत सुना जा रहा है, तनाव का एक कारण है।
हाल ही शोध कार्यों से यह ज्ञात हुआ है कि बचपन का यौन शोषण आगे चलकर उन्हें अपराधों, नशीली दवाओं के सेवन व वेश्यावृत्ति की ओर उन्मुख कर सकता है और उनकी किशोरावस्था व वयस्क जीवन में व्यक्तित्व संबंधी विकृतियां भी पैदा कर सकता है।
बांझपन:- बांझपन भी अत्यधिक मानसिक तनाव, उत्कण्ठा व उदासीनता को जन्म दे सकता है। मनोवैज्ञानिक रोग बहुत से स्त्री रोगों से जुड़े हैं जैसे बच्चेदानी का निकाला जाना या स्तन कैंसर, जो कि अधिकतर अधेड़ आयु में या और बाद में होते हैं।
रजोनिवृत्ति:- महिला को रजोनिवृत्ति के उपरांत, हार्मोनल बदलाव के कारण भी मानसिक तनाव, उत्कण्ठा, बेचैनी व उदासीनता आ जाती है।
मनोवैज्ञानिक और परामर्शदाता से अपने तनाव के विषय में बातचीत करने से महिला का भावनात्मक तनाव कम हो सकता है। पति एवं परिवार के अन्य सदस्यों को परामर्श देने से मनोवैज्ञानिक तौर पर सहायक वातावरण बनता है। आराम और मनोरंजन भी इस दिशा में सहायक क्रियाएं हैं। अनुराग परिमल(स्वास्थ्य दर्पण)