संजीवनी

टेंशन में क्यों रहती हैं महिलाएं ?

पुरुषों की तुलना में महिलाएं रहती हैं अधिक तनावग्रस्त

व्यवहार विशेषज्ञों व समाजशास्त्रियों का मानना है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा चिंतित और परेशान रहती हैं और वे बहुत जल्दी गुस्सा या फिर रुआंसी हो जाती हैं। आखिर महिलाएं इतनी टेंशन में क्यों रहती हैं ? कोलकाता के फोर्टिस अस्पताल में सीनियर साइकोलौजिस्ट डॉ. संजय गर्ग ने पत्नियों के अक्सर परेशान रहने और उनकी तुनकमिजाजी के कुछ खास कारण बताएं

महिला चाहती है आपका ध्यान

महिला चाहती है कि आप उसकी ओर ध्यान दें, उसके प्रति सहानुभूति रखें औऱ उसकी चिंता, फिक्र या एंग्जायटी को सही मानते हुए उसे ढाढस बंधाएं और उसे खुद का ध्यान रखने के लिए कहें। ऐसे में जब आप खुद के काम में ही व्यस्त रहते हैं या उसकी किसी समस्या को नोटिस नहीं करते तो वह जरा स्ट्रेस में रहने लगती है। अगर आप उसके स्ट्रेस को भी नोट नहीं कर पाते तो वह जरा खुलकर अपनी भावनाएं प्रकट करने लगती है और अपने गुस्से का इजहार करती है ताकि आपको पता चल जाए कि वह अपसेट है। कई बार आप उसकी प्रतिक्रिया को छोटी सी बात का बतंगड़ मानने लगते हैं और ऐसा ही उससे कह देते हैं तो बाल बनने की बजाय बिगड़ जाती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह स्थिति ‘पोलराइजेशन’ कहलाती है।

महिलाओं को चाहिए ज्यादा नींद

महिलाओं को पुरुषों से अधिक नींद की जरूरत होती है लेकिन वे अक्सर पूरी नींद नहीं ले पातीं। पति तो सुबह देर तक सोकर अपनी नींद पूरी कर लेता है लेकिन पत्नी को घरेलू कामकाज निपटाने के लिए सुबह नियमित समय पर ही उठना पड़ता है। ऊपर से अगर पत्नी कामकाजी हो तो दोपहर में भी सो पाने का कोई चांस नहीं। यह एक प्रमाणित वैज्ञानिक तथ्य है कि नींद पूरी न हो पाने की वजह से व्यक्ति एंग्जायटी, स्ट्रेस या डिप्रेशन का शिकार हो सकता है।

महिलाओं के स्ट्रेस की मनोवैज्ञानिक वजह

वेब प्रोग्राम बनानेवाली कंपनी लैंटर्न द्वारा करवाए गए शोध में पता चला है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में 11 फीसदी अधिक तनावग्रस्त और 16 फीसदी अधिक चिंतित रहती हैं। इससे पहले अमरीकन साइकोलौजिस्ट एसोसिएशन ने भी अपनी एक रिपोर्ट में इसी तरह के नतीजे प्रकाशित किए हैं। फैमिली साइकोलौजिस्ट एमी शोफनर ने एक रिपोर्ट में बताया कि महिलाओं में स्ट्रेस लेवल अधिक रहने की वजह चीजों या समस्याओं के प्रति उनका नजरिया है। महिलाएं तनाव देने वाली चीजों से दूर हटने की बजाय उनसे और ज्यादा चिपकती हैं। तनाव देने वाले व्यक्ति या वस्तु से भी वे दूर नहीं जातीं। वे बार-बार समस्याओं की गहराई में जाती हैं और उनमें उलझती हैं, इससे उनके तनाव का लेवल बढ़ जाता है। जबकि पुरुष ‘फाइट या फ्लाइट’ यानी कस के लड़ो या फिर भाग जाओ पर यकीन रखते हैं।

जैविक वजह

दी अमरीकन इंस्टीट्यूट औफ स्ट्रेस में चेयरमैन, न्यूयार्क मेडिकल कौलेज में क्लीनिकल मेडिसिन एंड साइकिएट्री के प्रोफेसर और इंटरनेशनल स्ट्रेस मैनेजमेंट एसोसिएशन के वाइस प्रेसीडेंट डॉ.पाल जे. रोश बताते हैं कि महिलाओं में हारमोन का उतार चढ़ाव पुरुषों की तुलना में काफी अधिक होता है, जिससे उनमें डिप्रेशन की समस्या होती है। प्रीमेन्स्ट्रुअल डायस्फोरिक डिसऔर्डर के अलावा महिलाओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन (डिलीवरी के बाद) भी होता है। साथ ही मेनोपौज में थायराइड की समस्या की वजह से भी डिप्रेशन और एंग्जायटी की समस्या देखी जाती है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में निजी संबंधों में अधिक इन्वाल्व रहती हैं, इसलिए इनमें जरा सा भी विघ्न पड़ने पर वे कुंठित और चिंतित हो जाती है। बीते 40 वर्षों में मध्यवयसीय महिलाओं में डिप्रेशन और टेंशन का स्तर दोगुना हो गया। 24 से 40 साल की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में में 3 से 4 गुना डिप्रेशन बढ़ गया है।

सैड सिंड्रोम का असर ज्यादा

दुनिया के जानेमाने वैज्ञानिकों के मुताबिक महिलाएं सैड सिंड्रोम यानी सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर से पुरुषों की तुलना में कम से कम चार गुना ज्यादा प्रभावित हो जाती हैं। सैड सिंड्रोम मौसम से जुड़ा हुआ एक प्रकार का डिप्रेशन है, जिसे विंटर डिप्रेशन, विंटर ब्लूज, समर डिप्रेशन, समरटाइम सैडनेस आदि नामों से भी जाना जाता है।

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