Ghanshyam Das Birla 
महान् विभूतियाँ

भारत में औद्यागिक विकास के पुराेधा : घनश्याम दास बिड़ला

महान विभूतियां

घनश्याम दास बिड़ला का जन्म 10 अप्रैल 1894 में राजस्थान के पिलानी गांव में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था। घनश्याम दास का विवाह सन् 1905 में दुर्गा देवी के साथ हुआ तथा सन 1909 में दुर्गा देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम लक्ष्मी निवास रखा गया। लगभग इसी सय दुर्गा देवी टी.बी. से पीड़ित हो चुकी थीं और सन् 1910 में इस रोग से उनकी मृत्यु हो गयी। 1912 में घनश्याम दास ने महेश्वरी देवी से पुनर्विवाह कर लिया। इस विवाह से बिड़ला दंपति की पांच संतानें हुईं । दुर्भाग्यवश महेश्वरी देवी को भी क्षय रोग हो गया। घनश्याम दास ने अपनी पत्नी सहित सभी बच्चों को स्वास्थ्य लाभ के लिए एक निजी चिकित्सक की देखरेख में हिमाचल प्रदेश स्थित सोलन भेज दिया पर महेश्वरी देवी बच नहीं पायीं और परलोक सिधार गयीं। हालांकि घनश्याम दास की उम्र उस समय महज 32 साल थी पर उन्होंने दोबारा विवाह नहीं किया और लालन-पालन के लिए अपने चार बच्चों को छोटे भाई बृज मोहन बिड़ला के पास भेज दिया और दो पुत्रियों को अपने बड़े भाई रामेश्वर दास बिड़ला के पास भेजा।

घनश्याम दास को पारिवारिक व्यापार और उद्योग विरासत में मिला जिसका विस्तार उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में किया। वे परिवार में परंपरागत ''साहूकारी'' व्यवसाय को निर्माण के क्षेत्र में मोड़ना चाहते थे इसलिए वे कोलकाता चले गए। वहां जाकर उन्होंने एक जूट कंपनी की स्थापना की क्योंकि बंगाल जूट का सबसे बड़ा उत्पादक था। वहां पहले से ही स्थापित यूरोपियन और ब्रिटिश व्यापारियों को घनश्याम दास से घबराहट हुई और उन्होंने अनैतिक तरीके से उनका व्यापार बंद कराने की कोशिश की पर घनश्याम दास भी धुन के पक्के थे और अड़े रहे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब समूचे ब्रिटिश साम्राज्य में आपूर्ति की कमी होने लगी तब बिड़ला का व्यापार खूब फला-फूला।

सन् 1919 में उन्होंने 50 लाख की पूंजी से ''बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड'' की स्थापना की और उसी साल ग्वालियर में एक मिल की भी स्थापना की गयी। सन् 1926 में उन्हें बिटिश इंडिया के केन्द्रीय विधान सभा के लिए चुना गया। सन् 1932 में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर दिल्ली में ''हरिजन सेवक संघ'' की स्थापना की। 1940 के दशक में उन्होंने ''हिन्दुस्तान मोटर्स'' की स्थापना कर कार उद्योग में कदम रखा। देश की आजादी के बाद घनश्याम दास बिड़ला ने कई यूरोपियन कंपनियों को खरीदकर चाय और टक्सटाइल उद्योग में निवेश किया। उन्होंने कंपनी का विस्तार सीमेंट, रसायन, रेयान, स्टील पाइप जैसे क्षेत्रों में भी किया। ''भारत छोड़ो आन्दोलन'' के दौरान घनश्याम दास को एक ऐसा व्यावसायिक बैंक स्थापित करने का विचार आया जो पूर्णत: भारतीय पूंजी और प्रबंधन से बना हो। इस प्रकार यूनाइटेड कर्मिश्यल बैंक की स्थापना 1943 में कोलकाता में की गयी। यह भारत के सबसे पुराने व्यावसायिक बैंकों में से एक है और इसका नाम अब यूको बैंक हो गया है।

सन् 1943 में घनश्याम दास बिड़ला ने पिलानी में ''बिड़ला इंजीनियरिंग कॉलेज'' (सन् 1964 में इसका नाम ''बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस'' हो गया) और भिवानी में ''टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्सटाइल एंड साइंसेज'' की स्थापना की। ये दोनों संस्थान भारत के सर्वोच्च इंजीनियरिंग संस्थानों की श्रेणी में आते हैं। पिलानी में ''सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट'' की एक शाखा, एक आवासीय विद्यालय और पालिटेक्नीक कॉलेज हैं। जी.डी. बिड़ला मेमोरियल स्कूल रानीखेत जो देश के सर्वश्रेष्ठ आवासीय विद्यालयों में एक है, उनकी याद में स्थापित किया गया था।

सन् 1957 में भारत सरकार ने उनको देश के दूसरे सर्वश्रेष्ठ सम्मान ''पद्म विभूषण'' से सम्मानित किया। घनश्यामदास बिड़ला राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के करीबी मित्र, सलाहकार एवं सहयोगी थे और उन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया। जब बापू की हत्या हुई, उस दौरान उनका प्रवास बिड़ला के दिल्ली निवास पर ही था और 4 महीने से वे वहां रह रहे थे। 19 जून 1983 को मुंबई में घनश्याम दास बिड़ला का स्वर्गवास हो गया। - गोपाल शरण गर्ग




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