झारखंड : जेपीएससी की परीक्षा के नतीजे लंबे संघर्षों के दौर से गुजर रहे उम्मीदवारों के लिए सुखद एहसास लेकर आया है। इन नतीजों ने कई ऐसे परिवारों की जिंदगी बदल दी है जो पीढ़ियों से एक सपने को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनका ये सपना तो साकार हो गया है, लेकिन इसके पीछे मर्मस्पर्शी कहानियां हैं।
मिठाई के पैसे नहीं थे तो किसी ने चीनी खाकर और खिलाकर मुंह मीठा किया। कुछ मीठा हो जाए कि इससे और अच्छी वजह क्या हो सकती थी। किसी ने अपनी कामयाबी की स्क्रिप्ट एक हाथ से ही लिखी, क्योंकि वो दिव्यांग है। किसी ने सफलता का स्वाद स्विगी के पैकेट डिलीवरी करते करते चखे। हौसलों की उड़ान की ये कहानियां झारखंड के दूर-दराज और ग्रामीण इलाकों से बटोरी गई हैं। जेपीएससी से निकले ये वो जहां ढेर सारा संघर्ष है, अभावों भरी जिंदगी है लेकिन लंबे प्रयास के बाद कामयाबी की सुकून भरी छांव है।
ये कहानी बबीता पहाड़िया, विष्णु मुंडा और राजेश यादव जैसे सामान्य शख्सियतों की है, लेकिन इनकी जिंदगी की कहानियां असामान्य है।
झारखंड की पहाड़िया जनजाति वो आदिवासी समूह है जो आधुनिकता की दौड़ में इतनी पिछड़ी है कि अब विलुप्ति कगार पर है। इनके वजूद पर आए खतरे को देखते हुए सरकार को इनके संरक्षण के लिए लिए विशेष प्रयास करना पड़ रहा है। सादगी, प्रकृति से गहरा जुड़ाव, और स्वतंत्र जीवनशैली के लिए जाने जाने वाले पहाड़िया मुख्य रूप से खेती, शिकार और जंगल से प्राप्त संसाधनों से जिंदगी बसर करते हैं।