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वक्फ कानून पर रोक लगाएगा कोर्ट ?

जाने क्या हो सकता है

कोलकाता- वक्फ संशोधन अधिनियम यानी नए वक्फ कानून को लेकर कई राज्यों में माहौल गरमाया हुआ है। मुस्लिम संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से मांग कर रहे हैं कि इस कानून को भंग किया जाए। प्रदर्शनकारियों का तो यह भी दावा है कि जिस तरह किसानों ने आंदोलन कर तीनों कृषि कानूनों को वापस करा दिया, हम भी उसी तरह दिल्ली को घेर लेंगे और सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ेगा। हालांकि, यह इतना आसान नहीं है, लेकिन सरकार पर दबाव बनाने के तमाम प्रयास हो रहे हैं। इन्हीं प्रयासों में शामिल है देश के नामी वकील लगाकर इस नए कानून को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देना। उच्चतम न्यायालय में लगभग 120 याचिकाएं दर्ज कर इस कानून को रद्द करने की मांग की गई है। उच्चतम न्यायालय ने पहली मांग खारिज करते हुए इस पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया। गुरुवार को उच्चतम न्यायालय ने याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र को 7 दिन का नोटिस जारी किया। यह भी कहा कि केंद्र सरकार के नोटिस के जवाब में याचिका दाखिल करने वाले लोग 5 दिन में अपना पक्ष रख सकते हैं। उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के बीच आम आदमी के मन में एक ही सवाल कौंद रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस नए कानून पर रोक लगा देगा? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह संसद से पूर्ण बहुमत से पारित कानून है, जिसे राष्ट्रपति भी मंजूरी दे चुकी हैं और यह तत्काल प्रभाव से भी लागू हो गया है। सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय लेगा, यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रुख को देखकर लग रहा है कि वह पूरा कानून रद्द नहीं करेगा, बल्कि उसके कुछ प्रावधानों में बदलाव का सुझाव या निर्देश दे सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई तक वक्फ बोर्ड में नई नियुक्तियों पर रोक लगा दी है, साथ ही उसके प्रारूप में बदलाव पर रोक लगा दी है। विशेषकर वक्फ बाय यूजर नामक प्रावधान पर अभी कोई कदम उठाने से केंद्र को रोका गया है। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 120 याचिकाओं की फाइलें पढ़ना संभव नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता शीर्ष 5 मांगों पर सहमति बनाएं और उन्हीं 5 मांगों के बारे में वह सुनवाई करेगा।

कानून को खारिज न किए जाने की संभावना कई कारणों से है। पहला - यह संसद द्वारा पूरी निर्धारित प्रक्रिया का पालन कर पारित किया गया कानून है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू भी हो चुका है। ऐसे मामले कम ही हैं जहां संसद द्वारा पारित कानून को सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह खारिज किया हो। संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत सुप्रीम कोर्ट को केवल वे कानून रद्द करने का अधिकार है जो संविधान के विरुद्ध हों। दूसरा कारण - कांग्रेस सरकार ने जिस तरह वक्फ को सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर कर दिया था, उसे सुप्रीम कोर्ट सही नहीं ठहरा पाएगा, इसलिए वक्फ के निर्णयों को कोर्ट में चुनौती देने वाले प्रावधान को वह उचित मान सकता है, क्योंकि इस तरह की मनमानी शक्तियों अन्य किसी भी संस्था को नहीं दी गई हैं। तीसरा कारण - यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता कि सरकार ने नया वक्फ कानून बनाकर किसी मजहब पर आघात किया है तो वह तत्काल इस पर अस्थायी रोक लगा सकता था, लेकिन उसने पूरे कानून पर रोक लगाने की बजाय केवल कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है। मतलब, उसे पूरा कानून गलत नहीं लग रहा, उसके कुछ प्रावधानों पर आपत्ति को वह सही मान सकता है।

संभावना यही है कि वक्फ बाय यूजर जैसे प्रावधान को खारिज कर दे, यह भी संभावना है कि चूंकि वक्फ मुस्लिमों की संस्था है, इसलिए नए कानून में गैर मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल किए जाने के प्रावधान को भी वह हटा दे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस कानून को ही खारिज कर देगा, ऐसा नहीं लगता। हालांकि, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि केंद्र सरकार अपना पक्ष कितनी मजबूती से रखती है और याचिकाकर्ता उसके जवाब में क्या कहते हैं। सुप्रीम कोर्ट को यही देखना चाहिए कि क्या नया कानून किसी तरह संविधान का उल्लंघन करता है? यदि हां तो इसे रद्द करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास है, अन्यथा कानून लागू हो ही चुका है।

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