मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने एक सहकर्मी से सामूहिक दुष्कर्म करने के मामले में तीन पुरुषों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है और कहा कि जब कोई महिला ‘नहीं’ कहती है, तो इसका मतलब इनकार ही होता है तथा उसकी पिछली यौन गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
पीड़ित के शरीर, मन और निजता पर हमला
न्यायमूर्ति नितिन सूर्यवंशी और न्यायमूर्ति एम. डब्ल्यू चांदवानी के पीठ ने छह मई के अपने फैसले में कहा कि ‘नहीं’ का मतलब नहीं ही होता है। पीठ ने दोषियों द्वारा पीड़िता की नैतिकता पर सवाल उठाने के प्रयास को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि महिला की सहमति के बिना यौन संबंध बनाना उसके शरीर, मन और निजता पर हमला है। पीठ ने बलात्कार को समाज में नैतिक व शारीरिक रूप से सबसे निंदनीय अपराध बताया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर कोई महिला नहीं कहती है तो उसका मतलब नहीं ही होता है, इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है और किसी महिला की तथाकथित अनैतिक गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। पीठ ने तीनों व्यक्तियों की दोषसिद्धि को रद्द करने से इनकार कर दिया लेकिन उनकी सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 20 वर्ष कर दिया। याचिका में तीनों व्यक्तियों ने दावा किया था कि महिला शुरू में उनमें से एक के साथ संबंध में थी लेकिन बाद में वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ ‘सहजीवन साथी’ के तौर पर रहने लगी। नवंबर 2014 में तीनों ने पीड़िता के घर में घुसकर उसके साथ रहने वाले पुरुष साथी पर हमला किया। दोषी महिला को जबरन पास के एक सुनसान स्थान पर ले गये, जहां उन्होंने उससे बलात्कार किया।
सहमति के बिना कोई भी यौन कृत्य बलात्कार
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि भले ही एक महिला अलग हो गयी हो और अपने पति से तलाक लिये बिना किसी अन्य व्यक्ति के साथ रह रही हो, तो भी कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे अपने साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। पीठ ने कहा कि भले ही पीड़िता और दोषियों में से एक के बीच पहले संबंध थे लेकिन अगर पीड़िता उसके और अन्य अभियुक्तों के साथ संबंध बनाने को तैयार नहीं है तो उसकी सहमति के बिना कोई भी यौन कृत्य बलात्कार माना जायेगा।