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सरकार ने पारित किए 27 विधेयक, विपक्ष का हंगामा, विरोध और वॉकआउट

संसद का मानसून सत्र – 2025

सर्जना शर्मा (नई दिल्ली) : 'संसद का मॉनसून सत्र देश और सरकार के लिए सौ फीसदी लाभदायक और सफल रहा विपक्ष के लिए नुकसान दायक'। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने सत्र के अंतिम दिन जब मीडिया को पूरे सत्र की समीक्षा करते हुए ये कहा तो इसके गहरे मायने थे। सरकार ने मॉनसून सत्र के लिए अपना जितना एजेंडा रखा था वो सब पूरा कर लिया जितने विधेयक पारित करवाने थे - करवा लिए, जितने पटल पर रखने थे - रखे। विपक्ष का नुकसान रिजीजू ने इसलिए बताया कि शून्यकाल और प्रश्नकाल राज्यसभा में न के बराबर और लोकसभा में थोड़ा बहुत चल पाया। दोनों सदनों में सुबह के दो घंटे 11 बजे से 12 बजे तक शून्य काल और 12 से एक बजे तक प्रश्नकाल। असल में सांसदों का वो बहुमूल्य समय होता है जिसमें वे अपने संसदीय क्षेत्रों, समाज, राज्य, प्रांत, देश हित से जुड़े मुद्दे उठाते हैं। प्रश्नकाल में सांसद मंत्रियों से उनके मंत्रालयों से संबंधित प्रश्न करते हैं। देखा जाए तो नुकसान उन सांसदों का हुआ है जो विषय उठाना चाहते थे, जो प्रश्न पूछना चाहते थे। ये सांसदों का निजी समय होता है, संसद सत्र के दौरान ही उनको ये सवाल पूछने का अवसर मिलता है। इस संसद सत्र में बिहार मतदाता सूची में गहन पुनर्निरीक्षण के मामले के विरोध में विपक्ष ने ऐसा गतिरोध बनाए रखा कि पूरे 21 दिन सुबह के दो घंटे बर्बाद हुए। जुलाई की 21 तारीख से 21 अगस्त तक चले सत्र में कुल 21 दिन सदन की कार्यवाही चली। लोकसभा में 14 विधेयक पटल पर रखे गए थे जिसमें से 12 पारित हो गए। राज्यसभा में 15 विधेयक पारित किए गए। इस सत्र में दो मुद्दों पर विपक्ष अड़ा रहा - ऑपरेशन सिंदूर और बिहार मतदाता सूची। सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर पर 3 दिन की विशेष बहस रखी जिसमें लोकसभा में 18 घंटे 41 मिनट और राज्यसभा में 16 घंटे 25 मिनट बहस चली। कुल मिलाकर 35 घंटे 6 मिनट जबकि कुल समय 25 घंटे तय किया गया था 16 घंटे लोकसभा और 9 घंटे राज्यसभा को दिए गए थे। लोकसभा के 73 और राज्यसभा के 65 सांसदों ने चर्चा में हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री ने लोकसभा में बहस का जवाब दिया। कुल मिला कर 10 घंटे 6 मिनट ज्यादा समय दे दिया गया। इसके बाद ऑपरेशन सिंदूर का मामला दोबारा विपक्ष ने नहीं उठाया।

संसद का मॉनसून सत्र इस बार कई मायनों में ऐतिहासिक रहा सत्र आरंभ होते ही हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा पर महाभियोग की जोरदार वकालत कर रहे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा। उपराष्ट्रपति जो कि राज्यसभा के सभापति भी होते हैं इस मामले में सरकार से पहले पहल करके अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार बैठे। सरकार इस मामले में लोकसभा से मुहिम चलाना चाहती थी और विपक्षी सांसदों से भी इस बारे में बात कर रही थी, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के सांसदों ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति को 63 विपक्षी सांसदों से हस्ताक्षर करवाकर सौंप दिया जिसका जिक्र उपराष्ट्रपति ने सदन में भी कर दिया। दूसरी ओर, सरकार चाहती थी कि लोकसभा सांसदों से पहल हो और पहल ओम बिड़ला करें। इस पर मामला बिगड़ा और उपराष्ट्रपति ने आनन-फानन में अपना इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के साथ ही विपक्ष ने पासा पलट लिया जो विपक्ष उपराष्ट्रपति से बेहद नाराज़ रहता था, उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की बात शीतकालीन सत्र में कर रहा था, उसकी सहानुभूति जगदीप धनखड़ से हो गयी। समूचा विपक्ष धनखड़ से सहानुभूति जताने लगा और सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। उनको हटाए जाने पर सदन में सवाल उठाए। त्यागपत्र देने के बाद जगदीप धनखड़ न तो कहीं दिखायी दिए, न ही उनका कोई बयान आया। इस सत्र में संसद के गलियारों से लेकर देशभर में चर्चा रही कि नया उपराष्ट्रपति कौन होगा। सत्र के अंतिम सप्ताह से एक दिन पहले एनडीए ने अपने उपराष्ट्रपति के नाम का घोषणा कर दी। किशोर आयु से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े जनसंघ, भाजपा में रहे महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के नाम की घोषणा कर दी। इंडिया गठबंधन एनडीए उम्मीदवार के नाम के इंतजार में था, उन्होंने भी दक्षिण भारतीय के मुकाबले दक्षिण भारतीय उम्मीदवार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाया। 9 सितंबर को चुनाव होगा।

पूरा सत्र हंगामे की भेट चढ़ जाना, सदन में आए दिन नियम 267 के तहत 5 से लेकर 25 तक नोटिस विपक्षी दलों ने दिए, जो उपसभापति द्वारा हर रोज अस्वीकार किए गए। सदन ‘वोट चोर-गद्दी छोड़’ के नारों से गूंजता रहा, विपक्षी सांसद कई बार वैल में भी गए। एक दिन तो राज्यसभा में विपक्षी सांसदों को वैल में जाने से रोकने के लिए सुरक्षाकर्मी भी आ गए जिसका विपक्ष ने कड़ा विरोध किया। 45 साल से संसद कवर रहे वरिष्ठ पत्रकारों का कहना था कि राज्यसभा में ऐसी अराजकता पहली बार देखी गयी कि पूरे सत्र में गतिरोध बना रहा। राज्यसभा की मर्यादा और गरिमा कम हुई। लेकिन सरकार ने दो बजे के बाद सदन के बिजनेस को पूरी तरह चलाया, अपने सभी विधेयक पटल पर रखे और भारी शोर शराबे और वॉकआउट के बीच पारित करवाए। इसलिए सरकार का कहना है कि उनके लिए ये सत्र 100 फीसदी सफल रहा। लेकिन दोनों सदनों की उत्पादकता 40 फीसदी से नीचे रही, जबकि पहले 98 और 99 फीसदी भी रही है।

रिजीजू ने सत्र के समापन पर तीन बातों पर दु:ख जताया। एक तो सत्र समाप्त होने के बाद सदन के नेता प्रतिपक्ष और अन्य फ्लोर लीडर चाय पीने नहीं आए। सदन की परंपरा रही है कि अंतिम दिन प्रधानमंत्री के साथ चाय होती है, सद्भावपूर्ण वातावरण में सदन की तल्खियों को भुला कर अगले सत्र तक के लिए विदा ली जाती है। लेकिन राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे नहीं आए। इंडी गठबंधन के फ्लोर लीडर भी नहीं आए। दूसरा - गगनयान मिशन में अंतरिक्ष में गए ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का लोकसभा में विपक्ष ने अभिनंदन नहीं होने दिया। तीसरा - सरकार जो 130वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में लाई, उसका विपक्ष ने घोर विरोध किया। लोकसभा में विधेयक की प्रतियां फाड़कर गृहमंत्री अमित शाह पर फेंके जाने पर किरण रिजीजू ने दु:ख जताया। इस विधेयक पर लोकसभा स्पीकर ने संयुक्त संसदीय कमेटी का गठन कर दिया है। ऑनलाइन गेमिंग विधेयक दोनों सदनों में पारित कर कानून बनवाना समाज हित में एक बड़ा कदम रहा।

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