कोलकाता - देश के अनेक राज्यों में लगातार भूजल स्तर घटता जा रहा है। ख़ासकर उत्तर भारत के राज्यों में यह स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। विश्व जल दिवस वैश्विक जल संकट की कठोर याद दिलाता है। जिसमें 2.2 बिलियन लोग अभी भी स्वच्छ पानी की पहुंच से वंचित है । भारत में दुनिया की 18 फ़ीसदी आबादी निवास करती है इसलिए हमें गिरते भूजल स्तर पर गंभीर मंथन करने की आवश्यकता है।
भारत में हरियाणा की हालत गंभीर
हरियाणा भारत में सबसे अधिक जल-संकटग्रस्त राज्यों में से एक है, जिसके 60% से अधिक ब्लॉकों को केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) द्वारा ओवर एक्सटलॉइटेड या गंभीर श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह राज्य कृषि, पेयजल और औद्योगिक उपयोग के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर है। हालांकि, अत्यधिक निकासी के कारण जल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। वर्तमान के अनुमानों से पता चलता है कि राज्य के कुछ हिस्सों में भूजल स्तर प्रति वर्ष 1-1.2 मीटर की खतरनाक दर से कम हो रहा है। यदि यह प्रवृत्ति अनियंत्रित रूप से जारी रही तो हरियाणा को भयंकर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है, जिसका असर यंहा के लोगों की आजीविका और आर्थिक विकास दोनों पर पड़ेगा।
खेती की वजह से भूजल स्तर पे पर रहा है असर
हरित क्रांति ने हरियाणा को भारत के अग्रणी गेहूं और चावल उत्पादक राज्यों में से एक बना दिया है। लेकिन इस सफलता के लिए एक भारी कीमत चुकानी पड़ी है। धान जैसी अधिक जल खपत वाली फसलों की खेती के लिए व्यापक सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिससे भूजल स्तर में भारी कमी आती है। किसान अपनी फसलों की सिचाई के लिए ट्यूबवेल पर निर्भर हैं, लेकिन भूजल के अनियंत्रित दोहन ने राज्य के जलस्त्रोतों पर अत्यधिक दबाव पड़ा है।
शहरीकरण भी है एक वजह
हरियाणा के शहरों गुरुग्राम, फरीदाबाद और पानीपत में तेजी से शहरीकरण हो रहा है, जिससे भूजल की मांग अभूतपूर्व रूप से बढ़ रही है। नगर निगम की आपूर्ति प्रणालियां बढ़ती हुई आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही हैं, जिससे स्थानीय निवासियों और व्यवसायों को अंधाधुंध तरीके से भूजल निकालने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। औद्योगिक केन्द्र, विशेषकर कपड़ा और ऑटोमोबाइल क्षेत्र, उत्पादन के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिससे संकट और भी बढ़ गया है।
लोगों को इस परेशानी के खिलाफ जागकरूक होने की जरूरत
अनियमित मानसून पैटर्न ने हरियाणा के जल संकट को और बदतर बना दिया है। लम्बे समय तक सूखा रहने और उच्च वाष्पोत्सर्जन दर के कारण भूजल पुनर्भरण कम हो जाता है, जबकि तीव्र वर्षा के कारण अत्यधिक जल व्यर्थ बह जाता है, जिससे जलस्त्रोतों में रिसाव रुक जाता है। भूजल निष्कर्षण और पुनःपूर्ति के बीच यह असंतुलन राज्य को लगातार जल असुरक्षा की ओर धकेल रहा है।