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SC ने जमानत अर्जी खारिज किये जाने पर मप्र हाईकोर्ट पर जतायी नाराजगी

जाने क्या है पूरा मामला

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश पर नाराजगी जतायी है जिसमें कहा गया है कि दोषी की सजा निलंबित करने की अर्जी तभी स्वीकार की जा सकती है जब वह अपनी आधी सजा काट चुका हो।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां के पीठ ने एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि यदि लंबित मामलों की बड़ी संख्या के कारण उच्च न्यायालयों में निकट भविष्य में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर निर्णय की कोई संभावना नहीं है तो दोषी को जमानत दी जानी चाहिए। पीठ ने गुरुवार (17 अप्रैल) को दिये फैसले में इस बात पर आश्चर्य जताया कि उच्च न्यायालय ने कानून का एक नया प्रस्ताव तैयार किया है जिसका कोई आधार नहीं है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय को मौजूदा कानून को लागू करना चाहिए था और याची को जमानत के लिए उसके समक्ष जाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए था।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि इस तथ्य को देखते हुए कि अपीली की पैंट की जेब से दागदार नोट बरामद किये गये हैं और इसके लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है, इसलिए सजा को निलंबित करने और जमानत देने का कोई मामला नहीं बनता है। उच्च न्यायालय ने फैसले में कहा कि दूसरा आवेदन पहले आवेदन को खारिज किये जाने के दो महीने से भी कम समय में दायर किया गया है। तदनुसार यह स्पष्ट किया जाता है कि अपीली छूट सहित जेल की सजा की आधी अवधि पूरी करने के बाद सजा के निलंबन के लिए दोबारा अर्जी दाखिल कर सकता है। शीर्ष न्यायालय ने अपने कई फैसलों के बावजूद कानून के सामान्य उल्लंघन से जुड़े मामलों में अभियुक्तों को जमानत देने से इनकार करने वाली निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों पर भी नाराजगी जतायी।

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