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आखिर क्या है 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' केस? जानें इसका पूरा इतिहास

समझें 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' केस का मतलब और इसके ऐतिहासिक मामले

नई दिल्ली: बीते 20 जनवरी को कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक महिला ट्रेनी डॉक्टर से रेप और मर्डर के दोषी संजय रॉय की उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। इस फैसले की सबसे अहम बात यह है कि दोषी संजय रॉय को जीवनभर जेल में ही रहना होगा। यह फैसला कोलकाता के सियालदाह की सत्र अदालत ने सुनाया था। हालांकि, इस मामले में पीड़ित महिला डॉक्टर का परिवार और सीबीआई ने फांसी की सजा मांग की थी। लेकिन, अदालत ने फांसी की सजा न देकर उम्रकैद की सजा सुनाई।

साथ ही कोर्ट ने दोषी संजय पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। जबकि पश्चिम बंगाल सरकार को यह भी आदेश दिया है कि वह परिवार को 17 लाख रुपये मुआवजे के रूप में दे। अब इस मामले को लेकर पेंचिदियां थोड़ी बढ़ने लगी है और सीबीआई ने हाईकोर्ट का रूख किया है। इस केस को 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' बताते हुए सीबीआई ने दोषी के खिलाफ फांसी की मांग की है।

कोर्ट ने क्यों इस मामले को 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' नहीं माना?

जब इस मामले की सुनवाई सेशन कोर्ट में हो रही थी तब कोर्ट ने इसे 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' नहीं माना। अपने 172 पन्नों के आदेश में कहा कि यह अपराध क्रूर और नृशंस है। भारतीय न्याय व्यवस्था में फांसी की सजा उन मामलों में दी जाती है जो असाधारण रूप से नृशंस हो और समाज के सामूहिक विवेक को झकझोर कर रख देता हो। कोर्ट ने इस बात का भी जिक्र किया कि आंख के बदले आंख और जान के बदले जान की सोच से ऊपर उठने की जरूरत है।

यहां आपको यह जानना जरूरी है कि जब कोर्ट ऐसे मामलों को किसी खास श्रेणी में रखती हैं तो ही अमूमन मौत की सजा ही दी जाती है। जैसे- रेप के बाद हत्या, सामूहिक हत्या, आतंकवाद, अपहरण के बाद हत्या और राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह के मामले इसके तहत आते हैं। जो एक बड़े तौर पर समाज को झकझोर कर रख देते हैं।

दरअसल साल 1980 में सुप्रीम कोर्ट ने 'बेचन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब' के केस की सुनवाई के दौरान मृत्यु दंड की वैधानिकता बरकरार रखते हुए, मृत्युदंड देने के लिए कुछ सिद्धांत तय किए थे। तब भारत में सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' डॉक्ट्रीन स्थापित की थी। यह सिद्धांत कहता है कि मौत की सजा केवल उन मामलों में दी जानी चाहिए जो असाधारण रूप से घृणित, क्रूर या असाधारण होते हैं और समाज के सामूहिक विवेक को झकझोरते हैं। कोर्ट ने कहा था कि दुर्लभ केसों में भी फांसी की सजा अपवाद के तौर पर ही दी जानी चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि फांसी की सजा देने से पहले उम्रकैद जैसे विकल्पों पर विचार किया जाना भी जरूरी है।

किस मामले में मिली सबसे ज्यादा मौत की सजा?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित रिकॉर्ड के अनुसार, साल 2023 के अंत तक 561 कैदी ऐसे थे जिन्हें अलग अलग अदालतों ने फांसी की सजा सुनाई थी। वहीं दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का 'प्रोजेक्ट 39ए' देश में कितने लोगों को मौत की सजा हर साल दी गई, इस पर नजर रखता है। उनकी सलाना रिपोर्ट पर गौर करें तो देखेंगे कि भारत में 2015 से 2023 के बीच मौत की सजा के मामलों में 45 प्रतिशत की बढ़त हुई है।

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2019 से रेप के मामलों में ही सबसे अधिक फांसी की सजा दी गई है। जबकि 2023 में रेप के बाद हत्या के 120 मामलों में दोषियों को मौत की सजा मिली थी। हालांकि, यहां पर रेयरेस्ट ऑफ द रेयर जैसा मामला किसे माना जाए और किसे नहीं इसे लेकर कोई भी कानूनी परिभाषा नहीं है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' जैसे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आकाश बाजपेयी ये बताते हैं कि 'बेचन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब' के केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा था कि डेथ पेनल्टी को लेकर रेयरेस्ट ऑफ दे रेयर शब्द को कोट किया था। इसके बाद आगे रेयरेस्ट ऑफ दे रेयर को लेकर मामला जब बढ़ा तो सुप्रीम कोर्ट ने ये क्लियर किया कि इस मामले में किस-किस तरह के केसेस आ सकते हैं। जैसे कि किसी को घर में जलाकर जानबूझकर मार डाला है, किसी की हत्या करके उसे टूकड़े-टूकड़े कर देते हैं। इस तरीके के क्राइम जिसका असर एक बड़े स्तर पर हो, वो लोगों की भावनाओं को झकझोर कर रख दें। ऐसे मामले को रेयरेस्ट ऑफ दे रेयर केस माना गया है।

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