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संचार साथी ऐप पर सियासी तकरार: सरकार बोले सुरक्षा, विपक्ष बोले जासूसी

संचार साथी ऐप को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तगड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है।

दिल्ली : संचार साथी ऐप को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तगड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। सरकार ने यह ऐप सभी नए मोबाइल फोनों में प्री-इंस्टॉल करना अनिवार्य कर दिया है, ताकि साइबर सुरक्षा मजबूत हो सके और नकली IMEI नंबरों पर लगाम लगाई जा सके। दूरसंचार मंत्रालय ने मोबाइल निर्माताओं और आयातकों को 90 दिनों के भीतर यह व्यवस्था लागू करने का निर्देश दिया है। जो डिवाइस पहले से तैयार होकर बिक्री चरण में हैं, उनमें यह ऐप सॉफ़्टवेयर अपडेट के जरिए जोड़ा जाएगा।

सरकार का कहना है कि संचार साथी ऐप लोगों को फर्जी या चोरी किए गए मोबाइल की पहचान, अपने नाम पर चल रहे मोबाइल कनेक्शनों की जानकारी, स्पैम कॉल की शिकायत और खोए फोन की रिपोर्ट करने में मदद करेगा। इसके जरिए टेलीकॉम संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने और साइबर अपराधों पर नियंत्रण पाने में मदद मिलेगी। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि विपक्ष अनावश्यक विवाद खड़ा कर रहा है और यह ऐप पूरी तरह उपभोक्ता सुरक्षा के लिए है। उन्होंने बताया कि संचार साथी पोर्टल को 20 करोड़ और ऐप को 1.5 करोड़ से अधिक डाउनलोड मिले हैं। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि यह ऐप किसी भी अन्य ऐप की तरह डिलीट किया जा सकता है—इसे रखना अनिवार्य नहीं है।

दूसरी ओर विपक्ष का कहना है कि यह ऐप नागरिकों की निजता पर सीधा हमला है। कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार इस ऐप के जरिए जनता की हर गतिविधि और बातचीत पर नज़र रख सकेगी—जो कि अनुच्छेद 21 के अधिकार का उल्लंघन है। पी. चिदंबरम ने इसे “पेगासस का नया वर्जन” बताया, जबकि शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे “बिग बॉस-स्टाइल सर्विलांस” करार दिया। विपक्ष का कहना है कि सरकार गलत तरीके से लोगों के निजी डिवाइस में दखल देने की कोशिश कर रही है और वे इसका कड़ा विरोध करेंगे।

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