देश/विदेश

मुस्लिमों ने बंकिमचंद्र के भाव को कांग्रेस से बेहतर समझा: राजनाथ सिंह

‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा में टोके जाने पर भड़क गये राजनाथ सिंह, कहा : हमें कौन बैठाने वाला है, कौन बैठायेगा

नयी दिल्ली : रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को लोकसभा में उस वक्त भड़क गये जब ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा में उन्हें विपक्षी सदस्यों द्वारा बीच में टोका गया। राजनाथ सिंह कह रहे थे कि सच्चाई यह है कि भारतीय मुस्लिमों ने बंकिमचंद्र के भाव को... तब तक सदन में कुछ सांसद शोर मचाने लगे। इस पर राजनाथ सिंह भड़क गये और जोर से कहा- कौन बैठाने वाला है। कौन बैठायेगा। क्या बात करते हैं। अध्यक्ष महोदय, इनको रोकिए। संसद में चाहे जो बोले, सत्य से थोड़ा परे भी बोले, उस पर शोरशराबा नहीं मचाना चाहिए। आप बाद में खड़े होकर उसका प्रतिकार कर सकते हैं। यह संदद की मर्यादा है और मैंने सदैव इसका ध्यान रखा है।

‘वंदे मातरम्’ राजनीतिक या सांप्रदायिक अवधारणा नहीं’

सिंह ने ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्षों पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘वंदे मातरम्’ को रामायण के श्लोक ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी..’ से प्रेरित होकर रचा, जो मातृभूमि को स्वर्ग से ऊपर बताता है। भाषण के बीच में टोकने पर वह काफी भड़क गये। शोरगुल थमने पर उन्होंने अपनी अधूरी बात को पूरा करते हुए कहा कि सच्चाई यह है कि भारतीय मुस्लिमों ने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के भाव को कांग्रेस या मुस्लिम लीग के नेताओं की तुलना में कहीं अधिक अच्छी तरह से समझा।

सिंह ने जोर दिया कि बंकिमचंद्र का ‘वंदे मातरम्’ कोई राजनीतिक या सांप्रदायिक अवधारणा नहीं थी बल्कि राष्ट्रप्रेम की पुकार थी। इसे बाद में कट्टरपंथियों व तुष्टीकरण की राजनीति ने गलत रंग दिया। उन्होंने कहा कि आनंदमठ के पात्र भवानंद की ओर से गाये गये गीत में जन्मभूमि को ही जननी बताया गया, जो बंकिमचंद्र की राष्ट्रजननी पूजा की परंपरा को दर्शाता है। यह रचना ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रीय चेतना का सूत्र बनाती है।

वंदे मातरम्’ ने स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया

सिंह ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ भारत के इतिहास, वर्तमान और भविष्य से जुड़ा हुआ है। ‘वंदे मातरम्’ ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को अपार शक्ति दी। ‘वंदे मातरम्’ वह गीत है जिसने सदियों की गुलामी के बाद हमारे देश को जगा दिया। इसने आधी सदी तक स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और इसकी गूंज अंग्रेजी चैनलों के माध्यम से ब्रिटिश संसद तक भी पहुंची।

‘वंदे मातरम्’ की ऐसी थी ताकत... अप्रैल 1906 में ब्रिटिश सरकार ने ‘वंदे मातरम्’ नारे के सार्वजनिक जाप पर प्रतिबंध लगा दिया था। लोगों ने इस आदेश का खुलेआम उल्लंघन किया। इसी तरह उस्मानिया विश्वविद्यालय में भी ‘वंदे मातरम्’ जपने पर रोक लगा दी गयी थी। इस आदेश का विरोध करने पर एक छात्र श्री राम चंद्र को जेल भेज दिया गया था।

कांग्रेस ने सबसे पहले ‘वंदे मातरम्’ का उद्घोष किया : गोगोई

दूसरी ओर लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगाया और कहा कि प्रधानमंत्री और भाजपा के लोग जितनी भी कोशिश कर लें, पंडित जवाहरलाल नेहरू के योगदान पर दाग नहीं लगा सकते। उन्होंने सदन में वंदे मातरम् पर चर्चा में भाग लेते हुए यह भी कहा कि भाजपा के राजनीतिक पूर्वजों का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं रहा।

संसद परिसर में बंकिम चंद्र चटर्जी की प्रतिमा लगाने की मांग : कांग्रेस के ही दीपेंद्र हुड्डा ने सोमवार को सरकार से आग्रह किया कि बंकिम चंद्र चटर्जी की प्रतिमा संसद परिसर में लगाया जाना चाहिए। उन्होंने चर्चा’ में भाग लेते हुए कहा कि सरकार चटर्जी की प्रतिमा संसद में लगाने का प्रस्ताव लाये, विपक्षी पार्टी उनका समर्थन करेगी। उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा कराने को लेकर भाजपा को परोक्ष रूप से आड़े हाथ लेते हुए कहा कि भारत हमारी माता है और कोई सच्चा भक्त अपनी मां को राजनीति में नहीं ला सकता। आज राष्ट्रवाद को वोटवाद के लिए प्रयोग करने के प्रयास होते हैं।

SCROLL FOR NEXT