नयी दिल्ली : मद्रास उच्च न्यायालय ने एक बड़ी टेक कंपनी में काम कर रहीं तीन महिलाओं की कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत पर लेबर कोर्ट का फैसला खारिज करते हुए कहा है कि उत्पीड़न करने वाले की नीयत चाहे जो भी हो, कार्यस्थल पर किसी का अवांछित व्यवहार यौन उत्पीड़न है।
मामला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से जुड़ा
मामला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से जुड़ा है। एक नामी टेक कंपनी का सीनियर अफसर पर उसी ऑफिस में काम करने वाली 3 महिलाओं ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया। महिलाओं ने इंटरनल कंप्लेंट कमिटी (आईसीसी) में उस सीनियर के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी। महिलाओं का आरोप था कि जब वे काम करती हैं तो उनका सीनियर उनके पीछे बहुत सटकर खड़ा होता है। उनके कंधों को छूता है और हाथ मिलाने पर जोर देता है। सीनियर ने अपने बचाव में दलील दी कि उसकी मंशा महिलाओं को असहज करने की नहीं थी। वह तो सिर्फ अपने अधीनस्थों के काम की निगरानी के लिए उनके पीछे खड़ा होता था। उसका काम ही है कि अपने अधीनस्थों को बिना डिस्टर्ब किये उनके कामकाज की निगरानी करे। वह तो सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा था। आईसीसी ने शख्स को दोषी माना लेकिन लेबर कोर्ट ने उस फैसले को बदल दिया। महिलाओं ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में गुहार लगायी।
कोर्ट ने बताया क्या है अवांछित व्यवहार
उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति आर एन मंजुला के पीठ ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा को और स्पष्ट और मजबूत बनाते हुए लेबर कोर्ट के फैसले को पलट दिया और कहा कि ‘नीयत’ से ज्यादा ‘ऐक्शन’ महत्वपूर्ण है। उत्पीड़न करने वाले की नीयत चाहे जो भी हो, कार्यस्थल पर किसी का अवांछित व्यवहार यौन उत्पीड़न है। पीठ ने एक अमेरिकी अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर कुछ अच्छा नहीं लगता, अनुचित है और अवांछित व्यवहार जैसा लगता है जो दूसरे लिंग, यानी महिलाओं को प्रभावित करता है, तो इसमें कोई शक नहीं कि यह यौन उत्पीड़न की परिभाषा में आयेगा। पीठ ने अभियुक्त सीनियर की दलील से असहमति जताते हुए कहा कि शिकायतियों के मन में उसके खिलाफ शिकायत करने से पहले कोई गलतफहमी नहीं थी।