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‘विदेशी नागरिकों का निर्वासन क्यों नहीं किया, क्या किसी ‘मुहूर्त’ का इंतजार है’

सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार से पूछा, 14 दिन की मुहलत दी

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने विदेशी घोषित किये गये 63 लोगों को निर्वासित करने के बजाय अनिश्चित काल तक निरुद्ध केंद्रों (डिटेंशन सेंटरों) में रखने को लेकर असम सरकार को मंगलवार को फटकार लगाते हुए टिप्पणी की कि क्या आप किसी ‘मुहूर्त’ का इंतजार कर रहे हैं।

14 दिन में इन लोगों को वापस भेजने का आदेश

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां के पीठ ने पीठ ने असम में विदेशी घोषित किये गये लोगों के निर्वासन और डिटेंशन सेंटरों में सुविधाओं से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए असम सरकार को 14 दिन में इन लोगों को वापस भेजने और अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि आपने यह कहकर निर्वासन की प्रक्रिया शुरू करने से इनकार कर दिया कि उनके पते ज्ञात नहीं हैं। यह हमारी चिंता क्यों होनी चाहिए? आप उन्हें उनके देश भेज दें।

अनंत काल तक टिेंशन सेंटर में नहीं रख सकते

पीठ ने असम सरकार की ओर से पेश वकील से कहा कि जब आप किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित करते हैं, तो आपको अगला तार्किक कदम उठाना पड़ता है। आप उन्हें अनंत काल तक निरुद्ध केंद्र में नहीं रख सकते। संविधान का अनुच्छेद 21 मौजूद है।

केंद्र को भी नोटिस
पीठ ने केंद्र को भी नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह एक माह के भीतर हलफनामा दाखिल कर बताये कि ऐसे व्यक्ति जिनकी राष्ट्रीयता ज्ञात नहीं है, उन मामलों को किस तरह से निपटाया जाना है, क्योंकि वे न तो भारतीय नागरिक हैं और न ही उनकी असली नागरिकता पता है।

जांच कमेटी बनाने का निर्देश
पीठ ने कहा कि यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि डिटेंशन सेंटरों में सभी सुविधाएं ठीक रहें। साथ ही राज्य सरकार के अधिकारी एक समिति भी बनायें जो हर 15 दिन में एक बार ट्रांजिट कैंप/ डिटेंशन सेंटरों का दौरा करेगी। असम में फिलहाल सात डिटेंशन सेंटर हैं। इनमें से 6 अलग-अलग जेलों के अंदर हैं जबकि मटिया ट्रांजिट कैंप एक स्वतंत्र सुविधा है।

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