जम्मू (जे के ब्यूरो) : जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले में स्थित चशोती गांव में 14 अगस्त को बाढ़ और भूस्खलन के बाद राहत कार्यों में स्थानीय युवाओं की भूमिका बेहद सराहनीय रही।
‘चशोती बाइकर्स’ कहे जाने जाने वाले ये युवा स्वयंसेवक आपदा के तुरंत बाद घटनास्थल पर पहुंचे और दर्जनों लोगों की जान बचाई। इन युवा स्वयंसेवकों में एक भूप सिंह हैं, जो उस दिन श्रद्धालुओं को मचैल माता मंदिर ले जा रहे थे। हादसे के बाद भूप सिंह घायलों और बेहोश लोगों को अपनी बाइक से अस्पताल पहुंचाने लगे।
सीपीआर देकर बचायी जान
भूप सिंह ने कहा ‘मैंने एक वर्षीय बच्ची को कीचड़ से निकाला। वह पूरी तरह से भीगी हुई थी, नाक, कान और मुंह में कीचड़ भरा था। मैंने उसकी सांस नली साफ की और उसे सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) दिया। उसने खांसते हुए दोबारा सांस ली।’ भूप सिंह ने बच्ची को अपने साथी की गोद में बैठाया और उसे बाइक के जरिये टूटी हुई पगडंडियों से होते हुए हमोरी मेडिकल यूनिट तक पहुंचाया। रास्ते में बच्ची फिर बेहोश हो गयी, लेकिन भूप सिंह ने दोबारा सीपीआर देकर उसे होश में लाया। मेडिकल यूनिट में उसका प्राथमिक उपचार हुआ और इंजेक्शन दिए गए। उसी बीच, कीचड़ से सनी एक महिला दौड़ती हुई आई और बोली, ‘भूप, यह मेरी बेटी है।’ वह बच्ची की मां थी, जिसे एक अन्य बाइक सवार ने बचाया था। भूप सिंह ने कहा, ‘हैरानी की बात यह थी कि वह बच्ची मेरे मित्र और सहपाठी रंजीत की बेटी निकली।’ इस भावुक क्षण के बाद बाइकर्स दोबारा मलबे में फंसे लोगों को बचाने के लिए दौड़ पड़े।
गर्दन तक मलबे में दबे थे लोग
भूप सिंह ने बताया कि उन्होंने मोहन लाल को गर्दन तक मलबे में दबे हुए पाया और बाइक से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। पुराने मंदिर के पास फंसी 3 महिलाओं में से 2 को निकाला गया, जबकि तीसरी महिला का पैर मलबे में फंसा था। उन्होंने बताया, ‘हमारे पास कोई औजार नहीं था। हमने चूहों की तरह अपने हाथों से खुदाई की और अंततः उसे निकाला।’ युवाओं ने 5 से 6 शवों को भी मलबे से बाहर निकाला।
बाइकर्स ने निभाई देवदूत की भूमिका
भूप सिंह ने कहा, ‘स्थानीय लोगों, खासकर बाइकर्स ने देवदूत की भूमिका निभाई। पहले कुछ घंटों में आधिकारिक राहत दल नहीं पहुंचे थे। हमने 30 से 40 लोगों की जान बचाई और 10-15 शव निकाले, उसके बाद ही प्रशासन, सेना और अन्य दल पहुंचे।’ बाइकर्स की बहादुरी की सराहना पुलिस अधिकारियों ने भी की। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रदीप सिंह ने कहा, ‘एसडीआरएफ, सेना, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और पुलिस ने राहत अभियान चलाया, लेकिन पहले हीरो स्थानीय लोग ही थे। हम उन्हें दिल से धन्यवाद देते हैं।’ उन्होंने स्थानीय निवासी मंगा राम के योगदान का भी उल्लेख करते हुए कहा, ‘हम उनसे भविष्य में भी सहयोग की अपेक्षा रखते हैं।’ बहादुरी सिर्फ बाइकर्स तक सीमित नहीं रही।
आरिफ राशिद ने कंधे पर लोगों को 5 किलोमीटर तक पहुंचाया
किश्तवाड़ के एंबुलेंस चालक आरिफ राशिद ने भी अपनी जान खतरे में डाल कर लोगों को बचाया। उन्होंने तो लोगों को कंधे पर उठा कर 5 किलोमीटर से आगे उपचार केंद्र तक पहुंचाया। एक ग्रामीण ने बताया, ‘राशिद ने लगातार 3 दिन तक काम किया।’ स्थानीय गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘अबाबील’ ने 7 एंबुलेंस और 20 स्वयंसेवक तैनात किए, जिन्होंने अठोली अस्पताल से डोडा के अस्सार तक शवों को पहुंचाया। इस एनजीओ के सदस्य सरफराज ने कहा, ‘अब तक हमने 40 से 50 शव पहुंचाए हैं।’
संघ कार्यकर्ता भी बचाव- निर्माण कार्यों में शामिल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी पहले दिन से ही राहत कार्य में लगे हुए हैं। उन्होंने शवों को ढूंढे जाने से लेकर रक्त, भोजन और आश्रय तक की व्यवस्था की। एक स्वयंसेवक सुरेश ने कहा, ‘हम पहले दिन से यहां हैं। हम गांव के पुनर्निर्माण में भी सहायता करेंगे।’ सिख समुदाय ने अपनी सेवा परंपरा निभाते हुए बचावकर्मियों और पीड़ितों के लिए लंगर लगाया। स्वयंसेवक इंदरजीत सिंह ने कहा, ‘गुरु नानक की रसोई हर जरूरतमंद के लिए है।’ ‘सेवा भारती’ नामक संगठन ने भी एक सामुदायिक रसोई शुरू की है।
हीरो एसपीओ कुंजलाल ठाकुर को श्रद्धांजलि
चशोती के ‘हीरो’ कहे जाने वाले विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) कुंजलाल ठाकुर को श्रद्धांजलि दी जा रही है, जिन्होंने कई जिंदगियां बचाने के बाद अपनी जान गंवाई। जीवित बचे एक श्रद्धालु संतोष कुमार ने कहा,‘जब सब भाग रहे थे, तब वह लोगों को बचाने के लिए मलबे और बाढ़ में कूद गए। उनकी जान चली गयी। हम सरकार से उनके परिवार को सहायता और नौकरी देने की मांग करते हैं।’
चशोती में पसरा सन्नाटा
कभी 75 परिवारों का गांव रहा चशोती आज मलबे में तब्दील हो चुका है। अपनों को खो चुके, अपना सब कुछ गंवा चुके लोगों के बीच सन्नाटा पसरा हुआ है, लेकिन उनके बीच साहस और सेवा की कहानियां जीवित हैं। यह कहानी सिर्फ तबाही की नहीं, बल्कि मानवीय जज्बे की भी है - बाइकर्स जो जीवन रेखा बने, एक एंबुलेंस ड्राइवर जो बिना थके काम करता रहा, स्वयंसेवक जिन्होंने भोजन और ढांढस दिया और एक पुलिसकर्मी जिसने अजनबियों की जान बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी। 14 अगस्त को दोपहर करीब साढ़े बारह बजे मचैल माता मंदिर की यात्रा के मार्ग में स्थित गांव चशोती में बादल फटने की घटना को याद करते हुए गांव के निवासी अर्जुन सिंह ने कहा, ‘जब प्रकृति ने हमारी परीक्षा ली, तो सबसे पहले इंसानियत ही सामने आई।’