BERNARD GAGNON
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हावड़ा स्टेशन की भव्य इमारत केवल यातायात का केंद्र नहीं, बल्कि स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण

स्टेशन के शिल्पकार हॉल्सी रिकार्डो और रोमनस्क की वास्तुकला की विरासत एक सदी पुरानी भव्यता : हावड़ा स्टेशन की अनकही कहानी

मेघा, सन्मार्ग संवाददाता

हावड़ा : देश के सबसे व्यस्त और ऐतिहासिक रेलवे स्टेशनों में शामिल हावड़ा स्टेशन की भव्य इमारत केवल यातायात का केंद्र नहीं, बल्कि स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है। हाल ही में सन्मार्ग ने 15 अगस्त 1854 को जब हावड़ा से चली थी पूर्वी भारत की पहली ट्रेन के विषय में जानकारी दी थी। अब हावड़ा स्टेशन के इतिहास को आगे बढ़ाते हुए इसके ऐतिहासिक भवन की बात करें तो इंग्लैंड के प्रसिद्ध वास्तुकार हॉल्सी राल्फ रिकार्डो की दूरदर्शिता और कल्पनाशील डिजाइन का परिणाम है, जिसने हावड़ा स्टेशन को पूर्वी भारत की विशिष्ट पहचान दिलाई। हालाकि हाव़ड़ा की इसी पुरानी इमारत के बगल में ही नयी इमारत का भी निर्माण हो चुका है परंतु पुरानी इमारत अपनी अलग पहचान रखती है। स्टेशन के शिल्पकार हॉल्सी रिकार्डो का जन्म 6 अगस्त 1854 को इंग्लैंड के बाथ शहर में हुआ था। वे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो के पौत्र थे। इंग्लैंड में शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने वर्ष 1878 में अपनी स्वतंत्र वास्तुकला प्रैक्टिस शुरू की। संयोगवश, जिस दौर में ईस्ट इंडियन रेलवे का विस्तार हो रहा था, उसी समय रिकार्डो ने आगे चलकर उसके सबसे महत्वपूर्ण स्टेशन हावड़ा स्टेशन का डिजाइन तैयार किया। बंगाल-नागपुर रेलवे लाइन के विस्तार के साथ एक नए और बड़े स्टेशन भवन की आवश्यकता महसूस की गई। इसके तहत रिकार्डो द्वारा डिजाइन किया गया नया हावड़ा स्टेशन उत्तर विंग में छह प्लेटफार्मों के साथ निर्मित किया गया। वर्ष 1901 में शुरू हुआ निर्माण कार्य 1911 में पूरा हुआ। उस समय यह स्टेशन न केवल ब्रिटिश भारत की राजधानी के अनुरूप भव्यता का प्रतीक था, बल्कि हुगली नदी के तट पर खड़ा एक स्थापत्य प्रहरी भी माना जाता था।

रोमनस्क शैली में डिजाइन किया गया है : हावड़ा स्टेशन को रोमनस्क शैली में डिजाइन किया गया है। ईंटों से बने विशाल मेहराबदार दरवाजे और खिड़कियां, पूर्वी हिस्से में बने 8 चौकोर टॉवर और उनकी सममित (Symmetric) संरचना इसे एक विशिष्ट पहचान देते हैं। मोटी दीवारें, मजबूत निर्माण और विशाल मेहराब रोमनस्क वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएं हैं, जो इस इमारत में स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। स्टेशन के उत्तर-पूर्वी कोने में स्थापित बड़ा घड़ी टॉवर दूर से ही समय बताने के उद्देश्य से बनाया गया था। स्टेशन का भव्य ग्रैंड कॉनकोर्स भी विशेष आकर्षण का केंद्र है। प्राकृतिक रोशनी के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई छत, लोहे की जालीदार सजावट और दीवारों पर उकेरे गए कलात्मक रिलीफ डिजाइन इसकी सौंदर्यात्मक गुणवत्ता को और बढ़ाते हैं। आज स्टेशन परिसर में लगे भित्ति चित्र (म्यूरल्स) बंगाल की समृद्ध लोक संस्कृति और कला को दर्शाते हैं, जो यात्रियों का स्वागत करते हैं। 15 फरवरी 1928 को लंदन में हॉल्सी रिकार्डो का निधन हो गया, लेकिन तब तक हावड़ा स्टेशन पूरी तरह कार्यरत हो चुका था और इसके विस्तार की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी थी। एक सदी से अधिक समय बीत जाने के बावजूद हावड़ा स्टेशन आज भी रिकार्डो की दूरदर्शिता और रोमनस्क स्थापत्य कला की अमर विरासत के रूप में खड़ा है।

आवश्यक पत्थरों में से कुछ धनबाद से मंगाने की योजना बनायी : दस्तावेजों के अनुसार, शुरुआत में स्टेशन के निर्माण के लिए आवश्यक पत्थरों में से लगभग दो-तिहाई झरिया (अब धनबाद जिला) क्षेत्र से लाने की योजना बनाई गई थी। बाद में यह पाया गया कि यह पत्थर पर्याप्त चिकनी और महीन सतह देने में सक्षम नहीं है। इसके बाद झरिया के पत्थर के स्थान पर मिर्जापुर के पत्थर को चुना गया, जो गुणवत्ता और मजबूती के लिहाज से अधिक उपयुक्त साबित हुआ। वहीं बॉम्बे (अब मुंबई) से लाए जाने वाले पोरबंदर पत्थर पर भी विचार हुआ, लेकिन उसे अपेक्षाकृत नरम मानते हुए उपयोग में नहीं लिया गया। ब्रिटिश कालीन अभिलेखों में यह भी उल्लेख मिलता है कि हावड़ा स्टेशन की तुलना उस समय कोलकाता की अन्य प्रमुख इमारतों से की गई थी। विशेष रूप से एस्प्लेनेड ईस्ट स्थित मिलिट्री एंड फॉरेन डिपार्टमेंट बिल्डिंग से इसकी तुलना की गई। जहां उस इमारत का अग्रभाग अधिक अलंकृत था और पिछला हिस्सा साधारण, वहीं हावड़ा स्टेशन की विशेषता यह रही कि इसके चारों ओर बड़ी मात्रा में तराशे गए पत्थरों का उपयोग किया गया, जिससे इसकी भव्यता हर दिशा से स्पष्ट दिखाई देती है।

राइटर्स बिल्डिंग हावड़ा स्टेशन से भी पुरानी इमारत : वहीं, पूरी तरह ईंट और प्लास्टर से निर्मित राइटर्स बिल्डिंग हावड़ा स्टेशन से भी पुरानी इमारत मानी जाती है। इन तुलनाओं से स्पष्ट होता है कि हावड़ा स्टेशन को केवल यातायात केंद्र नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण स्थापत्य स्मारक के रूप में भी विशेष महत्व दिया गया था। आज भी हावड़ा स्टेशन की लाल ईंटें, तराशे गए पत्थरों की सजावट और मजबूत संरचना ब्रिटिश काल की इंजीनियरिंग सोच और स्थापत्य कौशल की सशक्त गवाही देती हैं।

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