मेघा, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता: महानगर की हलचल भरी गलियों के बीच, जहाँ हर मोड़ पर बंगाल की सांस्कृतिक धड़कन सुनाई देती है, वहीं एक ऐसा स्थल है जहाँ कदम रखते ही समय ठहर-सा जाता है। जोड़ाबागान थाना क्षेत्र के गणेश टॉकिज इलाके में के.के टैगौर पर स्थित श्री बैकुंठनाथ मंदिर, जिसे वैकुंठनाथर कोविल भी कहा जाता है, दक्षिण भारतीय वैष्णव परंपरा का वह उज्ज्वल रत्न है जो महानगर की आपाधापी के बीच शांति और श्रद्धा का आश्रय देता है।
आस्था की नींव पर खड़ा इतिहास : इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1960 में हुआ। इसके पीछे मारवाड़ी व्यापारी परिवार—मुगनीराम बांगुड़ और उनके भाई रामकुमार बांगुड़—की दूरदर्शिता और गहरी भक्ति थी। कोलकाता में बढ़ते दक्षिण भारतीय समुदाय के लिए एक ऐसे पवित्र स्थल की आवश्यकता महसूस की गई, जहाँ वैष्णव परंपराओं का पालन शुद्ध दक्षिण भारतीय शैली में हो सके। यही संकल्प श्री बैकुंठनाथ मंदिर के रूप में साकार हुआ।
स्थापत्य: दक्षिण की छाप, कोलकाता की भूमि पर : मंदिर का स्थापत्य देखते ही दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों की स्मृति जाग उठती है। प्रवेश द्वार पर स्थित भव्य गोपुरम, बारीक नक्काशी से सुसज्जित स्तंभ और श्वेत संगमरमर की आभा—सब मिलकर एक अलौकिक वातावरण रचते हैं। संगमरमर से बने फर्श और दीवारें सौम्यता का एहसास कराती हैं, जबकि ऊँची संरचनाएँ आध्यात्मिक ऊँचाई की अनुभूति देती हैं। यह मंदिर केवल पूजा-स्थल नहीं, बल्कि शिल्प और परंपरा का जीवंत संग्रहालय भी है।
गर्भगृह में विराजमान वैकुंठनाथ : मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर से निर्मित भगवान बैकुंठनाथ (विष्णु) की मूर्ति विराजमान है। वे वीरासन में आसीन हैं, जिनके दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी स्थित हैं। दाहिनी ओर लक्ष्मी जी की अलग संनिधि है। उत्सवों के अवसर पर उत्सव मूर्तियों की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जो भक्तों के लिए विशेष आकर्षण होती है। यहाँ के पुजारी मुख्यतः तमिलनाडु से आते हैं और पारंपरिक वैष्णव विधि से पूजा-अर्चना करते हैं। तुलसी पत्र और पुष्प अर्पण की परंपरा यहाँ जीवंत रूप में देखी जा सकती है।
अनुशासन और प्रामाणिकता : श्री बैकुंठनाथ मंदिर में दक्षिण भारतीय परंपराओं का सख्ती से पालन होता है। गर्भगृह के भीतर परिक्रमा के लिए महिलाओं के लिए साड़ी और पुरुषों के लिए धोती अनिवार्य है। अन्यथा दूर से दर्शन की अनुमति है। कुछ लोगों को यह नियम कठिन लग सकता है, लेकिन यही अनुशासन मंदिर की प्रामाणिकता और सांस्कृतिक शुद्धता को बनाए रखता है।
उत्सव और भक्ति का संगम : एकादशी, वैकुंठ एकादशी और अन्य वैष्णव पर्वों पर मंदिर श्रद्धालुओं से भर उठता है। भजन-कीर्तन, विशेष अनुष्ठान और दीप-सज्जा के बीच मंदिर का वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो जाता है। इन अवसरों पर ऐसा प्रतीत होता है मानो कोलकाता के बीचों-बीच वैकुंठ लोक साकार हो उठा हो।
स्थान, समय और पहुँच : यह मंदिर कोलकाता के जोड़ाबागान में गणेश टॉकीज क्रॉसिंग के पास काली कृष्ण टैगोर स्ट्रीट पर स्थित है। दर्शन का समय सुबह 5:30 से 11:00 बजे तक और शाम 4:15 से 8:30 बजे तक है। हावड़ा या सियालदह स्टेशन से टैक्सी/ऑटो द्वारा तथा मेट्रो से गिरिश पार्क स्टेशन उतरकर मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
श्री बैकुंठनाथ मंदिर कोलकाता की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का अनुपम उदाहरण है—जहाँ दक्षिण भारतीय स्थापत्य, वैष्णव आस्था और महानगरीय जीवन एक-दूसरे में घुलकर एक अनोखा अनुभव रचते हैं। जो लोग कोलकाता को केवल एक शहर नहीं, बल्कि संस्कृति और आध्यात्मिकता के संगम के रूप में देखना चाहते हैं, उनके लिए यह मंदिर निस्संदेह एक अविस्मरणीय पड़ाव है।