नयी दिल्ली : सरकार ने देश की जैव-अर्थव्यवस्था (बायो इकनॉमिक्स) को बढ़ावा देने और विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार को गति देने के लिए सोमवार को उन्नत जैव-विनिर्माण केंद्रों के एक राष्ट्रीय नेटवर्क की शुरुआत की। उन्नत जैव-विनिर्माण केंद्रों को नेशनल बायो-इनेबलर्स या 'मूलांकुर' का भी नाम दिया गया है। 'उच्च-प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण मंच' पहल की शुरुआत केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (बाइरैक) ने बायो-ई3 नीति के तहत की गई है। बायो-ई3 नीति में पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और रोजगार के लिए जैव-प्रौद्योगिकी पर बल दिया गया है।
जैव-निर्माण : जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव राजेश एस गोखले ने कहा कि जैव-निर्माण वह क्षेत्र है जहां जीव विज्ञान, इंजीनियरिंग और डिजिटल प्रौद्योगिकी मिलकर भविष्य का निर्माण करेंगे। ये केंद्र नवाचार की जड़ें हैं, जो आने वाले वर्षों में भारत की जैव-अर्थव्यवस्था को मजबूती देंगे। नए जैव-विनिर्माण केंद्र स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, औद्योगिक जैव-प्रौद्योगिकी और एआई द्वारा संचालित जैव-निर्माण के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देंगे।
जैव-विनिर्माण केंद्र : केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कदम भारत को उन्नत जैव-विनिर्माण उद्योग के क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी बनाने की दिशा में एक बड़ा बदलाव है। उन्नत जैव-विनिर्माण केंद्र उन्नत प्रयोगशालाओं की तरह हैं जहां प्रयोगशाला स्तर पर विकसित प्रौद्योगिकी को उद्योगों में बड़े स्तर पर लागू करने के लिए सुविधाएं दी जाएंगी। इन केंद्रों में स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, जलवायु और उद्योगों में टिकाऊ समाधान तैयार करने के लिए कृत्रिम मेधा (एआई), मशीन से सीखने की प्रौद्योगिकी यानी मशीन लर्निंग और जैविक आंकड़ों (ओमिक्स) का विश्लेषण जैसे अत्याधुनिक साधनों का इस्तेमाल किया जाएगा। यह नेटवर्क स्टार्टअप, लघु उद्योगों, शोधकर्ताओं और शैक्षणिक संस्थानों को साझा प्रयोगशालाएं और तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
देश में 4,000 से अधिक जैव-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप : भारत में पहले से 21 जैव-प्रयोगशालाएं हैं और देश में 4,000 से अधिक जैव-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप सक्रिय हैं। कभी 10 अरब डॉलर पर रही जैव-अर्थव्यवस्था के वर्ष 2030 तक 300 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।