नयी दिल्लीःयूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के साथ व्यापार, निवेश व व्यवसाय सुविधा को बढ़ावा देने के लिए भारत, एक समर्पित मंच ‘ईएफटीए डेस्क’ बना रहा है। पिछले वर्ष 10 मार्च को भारत और चार यूरोपीय देशों के ईएफटीए (यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ) ने व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ावा देने के लिए एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। आधिकारिक तौर पर इस समझौते को व्यापार एवं आर्थिक भागीदारी समझौता (टीईपीए) नाम दिया गया है। इस वर्ष के अंत तक इसके लागू होने की उम्मीद है।
व्यापार की स्थितिः 2023-24 में भारत-ईएफटीए का द्विपक्षीय व्यापार करीब 24 अरब अमेरिकी डॉलर था, जबकि 2022-23 में यह 18.65 अरब अमेरिकी डॉलर था। स्विटजरलैंड, भारत में सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार व निवेशक है। इसके बाद नॉर्वे का स्थान है। अप्रैल 2000 से सितंबर 2024 के दौरान भारत को स्विटजरलैंड से 10.72 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मिला था।
कब होगा उद्घाटनः ईएफटीए डेस्क’ का उद्घाटन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल भारत मंडपम में ईएफटीए ब्लॉक के प्रतिनिधियों के साथ करेंगे। स्विजरलैंड के विदेश मंत्री हेलेन बुडलिगर आर्टिडा, नॉर्वे के व्यापार एवं उद्योग मंत्री टॉमस नोरवोल, आइसलैंड के स्थायी विदेश मंत्री मार्टिन आइजोलफसन और लिकटेंस्टीन के विदेश मंत्री डोमिनिक हस्लर भी इस मौके पर मौजूद रहेंगे। इस मौके पर एक उच्च स्तरीय ईएफटीए-भारत व्यापार गोलमेज बैठक भी की जाएगी।
क्या है उद्देश्यः इसका उद्देश्य भारत और चार ईएफटीए देशों के बीच व्यापार, निवेश और व्यवसाय सुविधा को बढ़ावा देने के लिए एक समर्पित मंच के रूप में काम करना है। यह समर्पित डेस्क भारत में विस्तार करने की इच्छुक ईएफटीए की कंपनियों के लिए एक केंद्रीकृत सहायता तंत्र के रूप में कार्य करेगा। यह बाजार की जानकारी व विनियामक मार्गदर्शन, व्यापार मिलान तथा भारत की नीति और निवेश परिदृश्य का मार्ग प्रशस्त करने में मदद करेगा। समझौते के तहत भारत को समूह से 15 वर्षों में 100 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता प्राप्त हुई है। वहीं स्विजरलैंड की घड़ियों, चॉकलेट और कटे व पॉलिश हीरों जैसे कई उत्पादों तक कम या शून्य शुल्क पर पहुंच हासिल है।
ईएफटीए देशः ईएफटीए देश यूरोपीय संघ (ईयू) का हिस्सा नहीं हैं। यह मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने और उसे बढ़ाने के लिए एक अंतर-सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना उन देशों के लिए एक विकल्प के रूप में की गई थी जो यूरोपीय समुदाय में शामिल नहीं होना चाहते थे।