नयी दिल्ली : भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक आकर्षक स्थल है और पिछले तीन साल से सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का भारत की अर्थव्यवस्था को ‘मृत’ बताना ‘बिल्कुल गलत’ है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक एन आर भानुमूर्ति ने यह कहा। उन्होंने बताया कि दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के उलट, भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक घरेलू कारकों पर आधारित है। विशाल घरेलू बाजार और बढ़ते डिजिटल बाजार के साथ, अनिश्चित वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के कारण वृद्धि के मोर्चे पर जोखिम सीमित है।
सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था : पिछले तीन वर्षों से भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी मुद्रास्फीति दर तीन प्रतिशत से भी कम है। अन्य सभी मानदंड जैसे चालू खाता घाटा (कैड), सार्वजनिक ऋण, विदेशी मुद्रा भंडार, सभी एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत दे रहे हैं। अत्यधिक गरीबी लगभग समाप्त हो जाने के साथ, हम जल्द ही चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। इसी तरह, आप जिस भी आर्थिक मानदंड पर नजर डालें, भारत कमजोर स्थिति में नहीं नजर आता है।
क्या है स्थिति : आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जून में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर छह साल के निचले स्तर 2.10 प्रतिशत रही। यह भारतीय रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर (चार प्रतिशत) से कम है। वहीं चालू खाते का घाटा बीते वित्त वर्ष 2024-25 में जीडीपी का 0.6 प्रतिशत रहा। इसी प्रकार, 25 जुलाई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.70 अरब डॉलर बढ़कर 698.19 अरब डॉलर पहुंच गया।
अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकता : यह पूछे जाने पर कि क्या हमारी अर्थव्यवस्था शुल्क संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत है, भानुमूर्ति ने कहा, वैश्वीकृत दुनिया में, किसी अर्थव्यवस्था की मजबूती केवल घरेलू कारकों पर ही निर्भर नहीं करती, बल्कि यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि हमारे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ वैश्विक संबंध कितने मजबूत हैं। कोई भी देश अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकता। अब तक, भारत का प्रदर्शन इस मामले में शानदार रहा है। भारत ने कई देशों के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाए हैं और वैश्विक दक्षिण की एक मजबूत आवाज भी बना है। लेकिन अगर उसे सालाना छह से सात प्रतिशत की दर से बढ़ना है, तो उसे अभी भी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहना होगा। वैश्विक वृद्धि के अभाव में, हम शायद केवल पांच से छह प्रतिशत की दर से ही वृद्धि कर पाएंगे।