FMCG GST 
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जीएसटी 2.0 : कम कीमतें तय करने में चुनौतियों का सामना कर रही हैं एफएमसीजी कंपनियां

विशेषज्ञों के अनुसार, कंपनियों के पास ‘गैर-मानक’ कीमतें अपनाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं

नयी दिल्ली : जीएसटी की कम दरें लागू होने के साथ रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली वस्तुएं बनाने वाली कंपनियों को अपने उत्पादों के लिए कम कीमतें तय करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन उन्हें दो महीने के भीतर कीमतों में पूर्ण समायोजन की उम्मीद है। रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली वस्तुएं बनाने वाली (एफएमसीजी) कंपनियों ने अपने उत्पाद के मूल्य कम से कम दो रुपये, पांच रुपये और 10 रुपये तक कम किए हैं। अब पारले जी बिस्कुट का एक छोटा पैकेट जिसकी कीमत पहले पांच रुपये थी अब वह 4.5 रुपये का हो गया है। शैम्पू का पाउच जिसकी कीमत दो रुपये थी अब 1.75 रुपये का हो गया है।

क्या है कारण : उद्योग जगत से जुड़े लोगों एवं विशेषज्ञों के अनुसार, कंपनियों के पास ‘गैर-मानक’ कीमतें अपनाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है क्योंकि उनके पास चीजों का वजन (ग्रामेज) तेजी से बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, जिसके लिए कारखाने के ढांचे में बदलाव की आवश्यकता होती है।अस्थायी उपाय के तौर पर उन्होंने सरकारी निर्देशों का पालन करने के लिए लोकप्रिय मूल्य पैक की अधिकतम खुदरा कीमत कम कर दी है।

22 सितंबर से प्रभावी : माल एवं सेवा कर (जीएसटर) की दो स्तरीय पांच प्रतिशत और 18 प्रतिशत दरें 22 सितंबर से प्रभावी हो गई हैं। पारले प्रोडक्ट्स के उपाध्यक्ष मयंक शाह ने कहा, ‘‘ हां, यह पूरी तरह से अस्थायी है। आम तौर पर जब भी आप किसी बदलाव या ऐसी किसी चीज की बात करते हैं, तो पैक के वजन में बदलाव करते हैं। इस तरह की चीजों में लगभग डेढ़ से दो महीने का समय लगता है। कंपनियां आमतौर पर डेढ़ से दो महीने का अतिरिक्त समय लेकर काम करती है।

कीमतों में समायोजन : डाबर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) मोहित मल्होत्रा ने कहा कि उनकी कंपनी ने अपने पैक की कीमतों में समायोजन किया है। डाबर में हमारा मानना है कि सामर्थ्य कभी भी गुणवत्ता की कीमत पर नहीं आना चाहिए। इसीलिए हमने अपने खंड में कीमतों को सक्रिय रूप से समायोजित किया है। जीएसटी कटौती के अनुरूप हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि हर उपभोक्ता इसका लाभ उठा सके...।

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