बिहार चुनाव के नतीजे आ गए हैं। नतीजे भी ऐसे कि न जीतने वालों ने ऐसी कल्पना की थी और न ही हारने वालों ने। एग्जिट पोल भी ऐसे परिणाम का अनुमान नहीं लगा पाए थे। हर तरफ एक ही चर्चा है - एनडीए की आंधी, एनडीए का तूफान, एनडीए की सुनामी... और इनमें लालटेन टूट गई, लालटेन उड़ गई, लालटेन बुझ गई... आदि। ये उपमाएं देने वाले कभी विचार भी नहीं करते होंगे कि जीत विनाशकारी नहीं होती जबकि आंधी हो, तूफान हो या सुनामी हो, तीनों ही विनाश लेकर आते हैं। तो इस तरह की उपमा देना ही गलत है। लेकिन कहते हैं कि जब भावनाएं प्रबल हों तो शब्द मायने नहीं रखते, इस मामले में भी यही बात लागू होती है - भाव एक ही है - एनडीए की बंपर जीत हुई है और महागठबंधन खुद ही ठगा-सा महसूस कर रहा है।
नतीजों ने किया हैरान
दबी जुबान में एक चर्चा और भी है - ये नतीजे भले ही आधिकारिक तौर पर दर्ज हो गए हों, लेकिन किसी के गले नहीं उतर रहे, विशेषकर सत्तारूढ़ गठबंधन को न चाहने वालों के गले। उन्हें लग रहा था कि इस बार तो सरकार पलट ही जाएगी, वह भी पलटू राम के नाम से मशहूर हो चुके नीतीश कुमार के पलटे बिना... यानी महागठबंधन की सरकार बनेगी, लालू यादव के बेटे तेजस्वी गद्दी पर बैठेंगे। लेकिन हुआ ये कि पूरा विपक्ष ही तीन दर्जन सीटों पर सिमट गया, जबकि मोदी-नीतीश की जोड़ी ने एनडीए का दोहरा शतक लगवा डाला।
यह बात सही है कि इन नतीजों पर यकीन करना आसान नहीं है, क्योंकि ऐसा कहीं से भी नहीं लग रहा था कि बिहार में ऐसी कोई लहर है या बिहारी एनडीए पर इस तरह मेहरबान हो जाएंगे। यहां तक कि खुद भाजपा या जदयू को भी नहीं लगा होगा कि वे इस तरह की प्रचंड जीत हासिल करेंगे। विपक्ष ने खैर सपने में भी नहीं सोचा होगा कि यह चुनाव ‘राजद-कांग्रेस’ के साथ-साथ तेजस्वी यादव व राहुल गांधी के अरमानों पर यूं बुलडोजर चला देगा।
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EVM खराब, वोट चोरी जैसी बातों का कोई अर्थ नहीं
सच्चाई यही है कि किसी को अच्छा लगे या खराब, किसी के गले उतरे या नहीं, ईवीएम को खराब बताया जाए या वोट चोरी के आरोप लगाए जाएं, चुनाव नतीजे अब सबको स्वीकार करने ही होंगे। ये नतीजे इस तरह क्यों आए, ये विचारणीय है, सभी दलों के लिए मंथन योग्य है। यदि भाजपा को यह लगता है कि यह उसकी जीत है तो संभवत: वह गलतफहमी में है, यदि नीतीश का जदयू सोचता है कि यह उसकी नीतियों की जीत है तो संभवत: वह भी गलत दिशा पकड़ रहा है।
NDA की जीत से बड़ी महागठबंधन की हार
असलियत यह है कि यह जितनी बड़ी भाजपा या जदयू की जीत है, उससे बड़ी विपक्षी महागठबंधन की हार है। उनकी इस बंपर जीत का असली श्रेय भी विपक्षी महागठबंधन को ही जाता है। जिस तरह से लालू यादव की पार्टी राजद में सिर-फुटौवल हुई, जिस तरह बड़े भाई तेजप्रताप यादव को घर व परिवार से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, जिस तरह महागठबंधन में अंतिम समय तक टिकट बंटवारे को लेकर खींचतान हुई, असल में यही सब कारक विपक्ष को ले डूबे।
ऐसा नहीं है कि नीतीश के सुशासन से बिहार के लोग बहुत खुश थे या केंद्र सरकार की नीतियां उनको अत्यंत रास आ रही हैं, लेकिन उन्होंने अंतिम समय में जो कदम उठाए, वे वोट खींचने में सहायक रहे। भाजपा ने हिन्दुत्व की लाइन पकड़ी तो जदयू ने मुस्लिमों को भी टिकट देकर सेक्यूलर का तमगा बचाए रखा।
महिला वोटर ने दिलाई सत्ता
नीतीश द्वारा विशेष योजना के तहत महिलाओं के खाते में दस-दस हजार रुपये भेजने का निर्णय हो या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बिहारी स्टाइल में गमछा घुमाना हो... वोटरों को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। विपक्षी दल ‘सेल्फ गोल’ करते दिखे, विशेषकर हर घर सरकारी नौकरी देने जैसे वादे जनता को जुमले ही लगे, क्योंकि जो संभव ही नहीं, वह गले कैसे उतरे।
अब इसे आंधी कहिये, तूफान कहिये या सुनामी कहिये, बिहार में जनता ने फैसला सुना दिया है - बिहार में फिर नीतीशे कुमार। जीतने की रणनीति बनाने से लेकर उसे जमीन पर अमल में लाने तक का काम कर दिखाने वालों को जीत की बधाई और जो हार गए हैं, उन्हें मंथन-चिंतन की सलाह कि कहीं तो चूक हुई है... अगली बार सुधार लेना।