पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) एक बार फिर से सुर्खियों में है, जहां इस विकल्प को मिले वोट कई सीट पर निर्णायक साबित हुए। राज्य की 26 विधानसभा सीट पर NOTA को मिले वोट हार-जीत के अंतर से अधिक रहे, जिससे चुनाव के नतीजों पर इसका सीधा असर पड़ा है।
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में 7,06,293 मतदाताओं ने NOTA का विकल्प चुना था जबकि 2025 में यह संख्या बढ़कर 9,10,710 हो गई। हालांकि यह आंकड़ा वर्ष 2015 के मुकाबले कम है, जब 9,47,279 मतदाताओं ने NOTA का बटन दबाया था।
सबसे अधिक 8,634 NOTA वोट कल्याणपुर सीट पर डाले गए। इसके अलावा गड़खा, कुशेश्वरस्थान, मधुबन और खगड़िया जैसी सीट पर भी नोटा के NOTA ने नतीजों की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं, 26 सीट पर NOTA को मिले वोट हार-जीत के अंतर से अधिक होने के कारण राजनीतिक दलों और रणनीतिकारों को अपनी चुनावी रणनीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर होना पड़ा है।
राजनीतिक विश्लेषक सुभाष पांडे ने कहा कि मतदाताओं के बीच NOTA का बढ़ता चलन इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जनता उम्मीदवारों के चयन को लेकर असंतुष्ट है। उन्होंने कहा, NOTA के बढ़ते वोट राजनीतिक दलों को एक सशक्त संदेश देते हैं। कई सीट पर NOTA ने चुनावी समीकरण बिगाड़े हैं, जिससे पार्टियों की चिंता बढ़ गई है।
बिहार में NOTA का उभरता रुझान यह दर्शाता है कि मतदाता विकल्प की तलाश में हैं और राजनीतिक दलों को उम्मीदवार चयन तथा स्थानीय मुद्दों पर अधिक गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है।